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________________ दान विचार भी नहीं ले जा सकता। खाली हाथ आया और खाली हाथ चला जाता है। इसी से सम्बन्धित एक कथा याद आती है - जैनशास्त्र में अमरावती के श्रेष्ठी सुमेद की एक कथा आती है उसका सारांश निम्न है अमरावती नगरी के सबसे धनिक सेठ की मृत्यु हुई । वह सुमेद के पिता थे। अन्तेष्टि क्रिया में सभी लोग इकट्ठे हुए। सभी संबंधियों ने विदाई ली। इसके उपरान्त शेठ के मुनिम ने सुमेद के समक्ष आकर सभी हिसाब-किताब प्रस्तुत किया । उसकी धन, दौलत, पैसा कितना है यह बताया । पिता का कारोबार कहाँ-कहाँ है और कितना फैला हुआ है । देश-परदेश में कितनी पेढ़ियां है । व्यापार धंधे में कितनी मूडी का रोकाण है सभी कुछ विगतवार बताया और उसे समझाया । इसके बाद मुनिम सुमेद को तहखाने में ले गया । भण्डारों और तिजोरियों की चाबिया उसे सौंपकर कहा कि अब इस सारी सम्पत्ति का मालिक वह है। सुमेद ने सभी हिसाब-किताब देखा, भण्डारों और तिजोरियों को देखा। मूल्यवान हीरे-मोती, सोना-चाँदी देखी जिसका मूल्य अरबों रूपये में था। इतनी सारी दौलत देखने के उपरान्त भी सुमेद को उसमें मोह-ममता या लालच नहीं हुआ। यह जानकर मुनिम को बहुत आश्चर्य हुआ। उसने सामने देखा कि सुमेद की आँखों में अश्रुधारा प्रवाहित हो रही थी। यह देखकर मुनिम ने प्रश्न किया कि तुम इतने अरबों रुपये के मालिक हो, इसके वारसदार हो, तुम्हारे पूर्वजों की यह सम्पत्ति है फिर क्यों तुम अश्रु बहा रहे हो? सुमेद ने मुनिम से कहा, 'मुझे तुमसे एक बात समझने की है। मेरे पड़दादा की मृत्यु हुई वह इस सम्पत्ति को साथ नहीं ले जा सके। मेरे दादा भी इस सम्पत्ति को यहीं छोड़ गये। मेरे पिता भी इस सम्पत्ति को साथ नहीं ले जा सके। तुम कोई ऐसी तरकीब बताओ मैं मेरी मृत्यु के बाद इस धन को साथ ले 'जाना चाहता हूँ, यहाँ इसे नहीं छोड़ना चाहता । कल सुबह से पहले मुझे कोई उपाय बताना क्योंकि शायद मेरी मृत्यु हो जाय और तुम इस धन की चाबी मेरी सन्तानों को दो । न मैं यह सम्पत्ति साथ ले जाऊँगा और न मेरी मृत्यु के उपरान्त मेरी सन्तान यह धन साथ ले जाएगें । इसलिए मैं इस धन की व्यवस्था करना
SR No.002432
Book TitleDan Amrutmayi Parampara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPritam Singhvi
PublisherParshwa International Shaikshanik aur Shodhnishth Pratishthan
Publication Year2012
Total Pages340
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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