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________________ दान विचार जरूरत मंदवालों के लिए शालाएँ बनवानी, गरीब बच्चों को पढ़ाना यह सब ज्ञानदान के प्रकार है। (४) अभयदान : इन सब दान में अभयदान अत्यन्त श्रेष्ठदान है । अभयदान अर्थात् सुख की इच्छावाले तथा दुःखों से गिरे हुए भयभीत प्राणियों को जो भय से मुक्ति दिलावे । सब प्रकार के प्राणियों को संकट से मुक्त करना, उनकी सहायता करनी, जीवनदान देना, शरण में आए हुए प्राणी की रक्षा करनी, उसको भय से बचाना, उसकी संपूर्ण रक्षा करनी । आचार्य वट्टेकर 'मूलाचार' में बताते हैं - "अभयदान यह सब दानों में श्रेष्ठ दान है।" मृत्यु के भय से भयभीत ऐसे जीव को जो अभयदान दिया जाता है वह सर्व दानों में श्रेष्ठ है। . आचार्य पद्मनंदी कहते हैं - "अभयदान यह एक मात्र श्रेष्ठदान है, बाकी के दान उसकी तुलना में गौण हैं।" इसके उपरान्त गुप्तदान की महिमा भी बहुत ही है। यह दान मनुष्य किसी भी प्रकार की अपनी प्रसिद्धि की आशा रखे बिना करता है अर्थात् इसमें अपना नाम, कीर्ति या यश का जरा भी मोह नहीं रखा जाता । इसलिए इस दान को 'गुप्तदान' कहा जाता है। दान देते समय दाता को स्वामी अदत, जीवअदत, तीर्थंकर अदत और गूरु अदत ये चार अदत को नजर समक्ष रखना चाहिए, अर्थात् दाता स्वयं जिसका मालिक न हो, दूसरा जो मालिक हो उसकी आज्ञा नहीं ली हो तो ऐसा दान नहीं करना चाहिए। ऐसा द्रव्य चोरी का द्रव्य कहा जाता है और वह दान भी अधिकार बिना का कहा जाता है। दान के विषय में कितने ही दृष्टांतों जानने जैसे हैं । जिसमें भगवान महावीर के किये गये दान में स्वयं त्याग की भावना की महिमा समाई हुई है। तीस वर्ष की उम्र में वर्धमान ने जब दीक्षा लेने का नक्की किया और दीक्षा का अवसर समीप आते जानकर प्रभु ने वरसीदान देने की शुरुआत करी। प्रभु सुर्योदय से प्रारम्भ करके दोपहर तक याचकों को दान देने लगे । प्रभु हर
SR No.002432
Book TitleDan Amrutmayi Parampara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPritam Singhvi
PublisherParshwa International Shaikshanik aur Shodhnishth Pratishthan
Publication Year2012
Total Pages340
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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