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दानमहिमागर्भितं श्री दान कुलकम्
२९३ ९. तपश्चर्या से अत्यंत शोषित देहवाले तपस्वी मुनिराज को क्षीर (खीर) का
दान देने से शालिभद्र भी सभी को चमत्कार पैदा कराए, वैसी ऋद्धि के
पात्र हुए ॥९॥ १०. पूर्वजन्म में किये हुए दान के प्रभाव से उत्पन्न अपूर्व शुभध्यान के प्रभाव । से अतिपुण्यवंत कयवन्ना सेठ विशाल सुखभोग के स्वामी हुए ॥१०॥ ११. धृतपुष्य और वस्त्रपुष्य नाम के महामुनि स्वलब्धि से सकल गच्छ की
निरतिचार भक्ति करके सद्गति (मोक्ष) प्राप्त की ॥११॥ १२. जीवित (महावीर) स्वामी की प्रतिमा की भक्ति के लिए राज्य का भाग
गाम गरास देकर के दीक्षित हुए उदायी नाम के चरम राजर्षि मोक्षगति को
प्राप्त किया ॥१२॥ १३. जिन्होंने सकल पृथ्वी को जिनचैत्यों से सुशोभित किया ऐसे संप्रति राजा
- अनुकंपादान और भक्तिदान (सुपात्रदान) से शासन प्रभावकों में रेखा को .. - अग्रसरता को प्राप्त किया ॥१३॥ १४. शुद्ध श्रद्धापूर्वक निर्दोष ऐसे मात्र उड़द के बाकुले का दान महामुनि को
देने से (जितशत्रु राजा का पुत्र) श्रीमूलदेवकुमार विशाल राज्यलक्ष्मी को प्राप्त किया ॥१४॥
१५. अति दान मिलने से वाचाल - खुश हुए कवियों (पंडितों) द्वारा रचित
सेंकड़ों काव्य प्रमाण वाला श्री विक्रमादित्य राजा का चरित्र आज भी लोक
' में प्रसिद्ध है ॥१५॥ १६. त्रिलोकबंधु ऐसे श्री जिनेश्वरों जो कि उसी भव में निश्चित मोक्षगामी होने से
कृतकृत्य है उन्होंने भी सांवत्सरिक महादान दिया ॥१६॥ १७. जिन्होंने प्रासुक (निर्दोष) पदार्थों का दानधर्म का प्रवाह इस अवसर्पिणीकाल
में भरतक्षेत्र में चलाया, वे श्री श्रेयांसकुमार मोक्ष के स्वामी क्यों नहीं होए ? ॥१७॥