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________________ 29 १०८ चतुर्थ अध्याय दान से लाभ १. सुपात्रदान से धर्म प्राप्ति २. दान : जीवन का अ-मृत तत्त्व (जीवन्त तत्त्व) ३. दान : कल्याण की नींव ४. दान : धर्म का प्रवेशद्वार ५. दान : गृहस्थ-जीवन का सबसे प्रधान गुण ६. दान द्वारा उद्धात भावनाओं का विकास ७. दान की पवित्र प्रेरणा (i) प्रकृति द्वारा दान की मूक प्रेरणा (ii) तीर्थंकरों द्वारा वार्षिकदान से प्रेरणा . (iii) रंकजनों के दान से प्रेरणा ८. दान से ऋण-मुक्ति १२० १२० १२५ १३५ पञ्चम अध्याय १४३ १४५ १४६ १४९ १५१ भारतीय संस्कृति में दान वैदिक षड्दर्शन मे दान-मीमांसा श्रमण परम्परा में दान ब्राह्मण और आरण्यक साहित्य में दान रामायण-महाभारत में दान की महिमा संस्कृत महाकाव्यों में दान संस्कृत के पुराण साहित्य में दान संस्कृत के नीति काव्यों में दान हिन्दी कवि और दान आचारशास्त्र में दान इतिहास के संदर्भ में दान षष्ठ अध्याय भावना के अनुसार दान का वर्गीकरण १. दान की तीन श्रेणियाँ १५२ १५४ १५६ १५९
SR No.002432
Book TitleDan Amrutmayi Parampara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPritam Singhvi
PublisherParshwa International Shaikshanik aur Shodhnishth Pratishthan
Publication Year2012
Total Pages340
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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