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________________ नवम अध्याय दान की निष्फलता के कारण भाव दान का स्वरूप बहुत से लोग दान की विधि से अनभिज्ञ होने के कारण दान के वास्तविक फल और उद्देश्य को पूर्ण नहीं कर पाते । इसका कारण दान के साथ विवेक, अनासक्ति, सात्त्विक बुद्धि और निःस्वार्थता एवं आदरभाव उनमें नहीं होता । इस कारण सब किया कराया निष्फल जाता है। इसीलिए एक जैनाचार्य ने दान के निम्नोक्त पाँच दूषण बताए हैं - _ "अनादरो विलम्बश्च वैमुख्यं विप्रियं वचः । पश्चात्तापश्च दातुः स्याद् दानदूषणपंचकम् ॥" - दान देते समय लेने वाले का अनादर करना, देने में विलम्ब करना, दान देने में अरुचि या बेरूखी बताना, लेने वाले को अपशब्द कहकर, डाँटफटकार कर या गालियों की बौछार करके देना, दान देने के बाद दाता के मन में प्रसन्नता के बदले पश्चात्ताप या रंज होना ये दान के पाँच दूषण हैं, जिनसे बचना बहुत आवश्यक है। कुछ लोगों की आदत होती हैं कि वे दान देते समय लेने वाले के साथ इस प्रकार से व्यवहार करते हैं, जिससे उसका अपमान और तिरस्कार हो जाय अथवा दान लेने वाले को नीचा दिखाने का प्रयत्न करते हैं, जिससे अपना बड़प्पन जाहिर हो अथवा वे दान देते समय ही इस प्रकार की तानाकशी करेंगे, जिससे लेने वाला अपमानित या लज्जित हो जाय ।
SR No.002432
Book TitleDan Amrutmayi Parampara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPritam Singhvi
PublisherParshwa International Shaikshanik aur Shodhnishth Pratishthan
Publication Year2012
Total Pages340
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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