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________________ २७३ दान की विशेषता कुपात्र का फल कटु है परन्तु जैनधर्म निष्ठुर बनना नहीं सिखाता । उसका आशय कुपात्रदान के पीछे यही है कि कुपात्र को जहाँ गुरुबुद्धि से, धर्मबुद्धि से, या मोक्षफल-प्राप्ति की दृष्टि से दिया जाता है, वहीं उसका फल एकान्त पाप कर्मबन्ध के रूप में आता है। जहाँ अपात्र या कुपात्र भी संकट में पडा हो अथवा विषम परिस्थिति में हो, रोगग्रस्त हो, दयनीय हालत में हो, अत्यन्त निर्धन, अंग-विकल, असहाय एवं पराश्रित हो, वह सुधरना चाहता हो, पात्र या सुपात्र बनने की भूमिका पर हो, वहाँ उसे देने से एकान्त पाप नहीं होता। अभिधान राजेन्द्रकोष में लिखा है - आहारादि शुद्ध हो या अशुद्ध यदि असंयमी को गुरुबुद्धि से दिया जाता है, तो वह कर्मबन्धकारक होता है, अनुकम्पाबुद्धि से दिया जाता है तो वह कर्मबन्धकर्ता नहीं होता । अथवा जो भोलाभाला गृहस्थ किसी अपात्र या कुपात्र का भविष्य उज्जवल जानकर उसके गुणों से लुब्ध होकर उसे दान देता है, वह दान भी उसके लिए अल्पकर्मबन्धकारक तथा बहुत निर्जराकारक होता है। - अगर कोई दाता केवल उत्कृष्ट सुपात्र की खोज में ही बैठा रहेगा तो वह अन्य सुपात्रों से तो वंचित रहेगा ही, साथ ही उत्कृष्ट सुपात्र के सुयोग से भी वंचित रहेगा, क्योंकि उत्कृष्ट का सुयोग भी सदा नहीं मिलता । फिर एक बात यह भी है कि जहाँ अन्य याचकों या पात्रों को दान देने का सिलसिला जारी रहता है, वहाँ उत्कृष्ट सुपात्र भी उसकी दानवृत्ति की प्रशंसा या महिमा सुनकर अनायास ही कभी-कभी आ पहुंच सकता है। ___ भौंरा उसी फूल के पास जाता है, जिस फूल के पास कुछ सुगन्ध, पराग या रस हो । वह उस फूल के पास नहीं जाता, जहाँ न सुगन्ध हो, न पराग हो और न ही रस हो । और यह बात भी है, जहाँ अन्य पुष्पग्राहक उड़ने वाले जानवर जिस फूलं पर सदा बैठते होंगे, वहीं भौंरा भी पहुँच जायेगा। अन्यथा वह उस पुष्प के पास नहीं पहुंचता । राजहंस प्रायः वहीं पहुँचता है, जहाँ दूसरे पक्षी दाने चुग रहे हों। निष्कर्ष में हम कह सकते हैं कि प्रत्येक दाता को अपने दान को सफल बनाने के लिए पात्रापात्र का विचार तो करना ही चाहिए । शीलांकाचार्य ने आचारांगसूत्र की टीका में स्पष्ट बता दिया कि पात्र,
SR No.002432
Book TitleDan Amrutmayi Parampara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPritam Singhvi
PublisherParshwa International Shaikshanik aur Shodhnishth Pratishthan
Publication Year2012
Total Pages340
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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