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________________ दान की विशेषता . २६३ महत्त्व बताकर कुछ स्वार्थी लोग दान लेते हैं, उनसे प्रत्येक धर्मपरायण, दानविवेकी, दाता को सावधान रहना है। जैन-श्रावक के लिए तो यह प्रत्यक्ष मिथ्यात्व माना गया है। सागारधर्मामृत में नैष्ठिक श्रावक के लिए हिंसा के निमित्तभूत पदार्थों का दान निषिद्ध किया है - नैष्ठिक श्रावक प्राणहिंसा के निमित्तभूत हों ऐसे भूमि, घर, लोहा, शस्त्र, गौ, बैल, घोड़ा वगैरह पशु, ग्रहण, संक्रान्ति, श्राद्धादि परम्परागत रूढिगत दान में ऐसे द्रव्यों को न दें। सच तो यह है कि देयद्रव्य भी दान की महिमा एवं फल को बढ़ानेघटाने में बहुत ही महत्त्वपूर्ण हिस्सा अदा करता है। इसीलिए विशिष्ट देयद्रव्य के देने से दान में विशेषता आ जाती है। योग्य और विशिष्ट देयद्रव्य के कारण दान में चमक आ जाती है। जैसे मिट्टी मिले हुए सोने को शुद्ध करके पॉलिश कर देने पर उसमें चमक-दमक आ जाती है, वैसे ही देयद्रव्य में विवेक और भावों की पॉलिश चढ़ा देने पर दान में भी चमक-दमक आ जाती है। संगम ग्वाले ने केवल खीर ही तो दी थी, किन्तु उस खीर के दान पर उद्धातभावों की पॉलिश लग जाने के कारण खीर का वह दान पुण्य की प्रबलता को लेकर चमक उठा। वह जैन इतिहास में प्रसिद्ध हो गया । उसका परिणाम शालिभद्र के रूप में साकार हो उठा। . १. हिंसार्थत्वान्न भू-गेह-लोह, गोऽश्वादि नैष्ठिकः । न दद्याद् ग्रह-सक्रान्ति-श्राद्धादौ वा सुदृग् द्रुहि ।। - सा. धर्मामृत ५/५३
SR No.002432
Book TitleDan Amrutmayi Parampara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPritam Singhvi
PublisherParshwa International Shaikshanik aur Shodhnishth Pratishthan
Publication Year2012
Total Pages340
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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