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________________ 25 इसलिए गृहस्थ के चार धर्मों में दान का प्रथम स्थान है । दान से दानी शीलवान बनता है, शीलवान से तपस्वी बनता है । तपश्चर्या से भाव शुद्ध बनता है, तब व्यक्ति में शुद्ध धर्म प्रगट होता है जो मुक्ति को प्रदान करता है । दान के विषय में इसीलिए लिखने का मन हुआ । तथा जैसे-जैसे इस विषय पर लिखती गई मुझे अपार आनन्द और आत्म- -सन्तुष्टि की अनुभूति हुई। इसलिए मुझे विश्वास है कि प्रबुद्ध पाठकों को भी इसे पढ़ते समय आनन्द की अनुभूती होगी । 'दान : अमृतमयी परंपरा' विषयक मेरे इस अध्ययन एवं चिंतन को मूर्त रूप प्रदान करने में जिन महापुरुषों विचारकों, दार्शनिकों, लेखकों तथा गुरुजनों का प्रत्यक्ष और परोक्ष सहयोग रहा है उन सबके प्रति आभार प्रदर्शित करना मैं अपना पुनीत कर्त्तव्य समझती हूँ । प्रस्तुत ग्रन्थ के लिए जिन जिन पुस्तकों को पढ़ा, उनसे संदर्भ लिये और जिनेकी प्रेरणा से मुझे में यह दृष्टिकोण आया तथा जिनके साहित्य ने न . केवल मेरे चिंतन को दिशा-निर्देश दिया है वरन् जैन ग्रन्थों के अनेक महत्वपूर्ण संदर्भों को बिना प्रयास के मेरे लिए उपलब्ध कराया, उन सभी की मैं आभारी जिनकी दिव्य अनुग्रह धारा सतत मेरे पर बरसती रही है ऐसे वात्सल्यवारिधी गुरुदेव श्री सिद्धिसूरिश्वरजी म.सा. तथा कल्याणकारीणी गुरुवर्या श्री पद्मलताश्रीजी मा.सा. के चरण कमलों में कोटि कोटि वन्दन । 'त्याग, ग्रंथि का : दान, ग्रन्थ का' हेडिंग वाले उद्गारवचन लिखकर भेजने की कृपा करने वाले पू. गुरुदेव श्री शीलचन्द्रसूरिश्वरजी म.सा. तथा 'धर्मस्यादिपदं दानम्' नामक शीर्षक के रूप में आशीर्वचन लिखकर भेजने की कृपा करने वाले पू. गुरुदेव श्री मुक्तिचन्द्रजी व मुनिचन्द्रजी म.सा. तथा ‘दान:सनातन संस्कृति' नामक शीर्षक के रूप में प्रस्तावना लिखकर भेजने की कृपा करने वाले पू. गुरुदेव श्री यशोविजयजी म.सा. की मैं अत्यन्त कृतज्ञ हूँ जिन्होंने अनेक कार्यों में व्यस्त रहते हुए भी मेरी प्रार्थना पर प्रस्तुत ग्रंथ के लिए 'आशीर्वचन' लिखकर भेजा । इसके लिये मैं उन सभी का आभार मानती हूँ उनके चरणों में कोटि कोटि वन्दन ।
SR No.002432
Book TitleDan Amrutmayi Parampara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPritam Singhvi
PublisherParshwa International Shaikshanik aur Shodhnishth Pratishthan
Publication Year2012
Total Pages340
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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