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________________ दान के भेद-प्रभेद २३३ दान के अन्य भेद प्राचीन जैन मनीषियों ने दान के सम्बन्ध में बड़ा ही सूक्ष्म और सार्वदेशिक चिन्तन किया है। ___दान के पूर्वोक्त चार भेद (या तीन भेदों में समाविष्ट चार भेद) अलौकिक और लौकिक दोनों दृष्टियों से होते हैं। परन्तु कुछ आचार्यों ने दान के अन्य भेद भी बताए हैं। जैसे उपदेशमाला और दानप्रदीप में दान के ८ भेद इस प्रकार किये हैं - (१) वसतिदान, (२) शयनदान,(३) आसनदान (४) भक्त (भोजन)दान, (५) पानीयदान,(६) भैषजदान, (७) वस्त्रदान, और (८) पात्रदान । वसतिदान से मतलब है - ऐसा स्थान या मकान साधु-साध्वियों या महाव्रतियों के निवास के लिए देना, जो उनके लिए कल्पनीय हो। . शयनदान से तात्पर्य है - सोने, बैठने के लिए तख्त, पट्टा आदि तथा चटाई आदि साधु-साध्वियों या उत्तम पात्रों को देना । ये भी कल्पनीय, निर्दोष तथा जीव-जन्तु से रहित हों, संयम साधनापोषक हों; उन्हें देना ही शयनदान है। आसनदान का अर्थ है - बैठने के लिए चौकी, मेज, स्टूल या अन्य लकड़ी आदि की वस्तु देना। भक्तदान से मतलब है - साधु-साध्वियों को न्यायगत, कल्पनीय शुद्ध एषणीय आहार देना । जिस वस्तु से धर्मवृद्धि हो, संयम-साधना निराबाध हो सके; वैसी खाद्य-वस्तुएँ देना ही भक्तदान है। पानीयदान का अर्थ है - साधु-साध्वियों को प्रासुक, कल्पनीय, भिक्षा के दोषों से रहित निर्दोष जल देना । भैषज्यदान का अर्थ है - साधु-साध्वियों को किसी प्रकार रोग या शरीर में असाता पैदा होने पर किसी प्रकार पीड़ा, व्यथा या व्याधि होने पर औषध भैषज्य (दवा-पथ्यपरहेज) आदि देना दिलाना । वस्त्रदान का अर्थ है - शुद्ध कल्पनीय वस्त्र साधु-साध्वियों को उनकी आवश्यकतानुसार देना-दिलाना । पात्रदान का अर्थ है – महाव्रतियों या साधु-साध्वियों को उनके लिए
SR No.002432
Book TitleDan Amrutmayi Parampara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPritam Singhvi
PublisherParshwa International Shaikshanik aur Shodhnishth Pratishthan
Publication Year2012
Total Pages340
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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