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________________ था कि दान की क्रिया ममता और परिग्रह को कम करती है। ममता और परिग्रह का अभाव ही तो धर्म है । इसीलिए नीतिकार कहते हैं कि "किसी विशिष्ट कार्य के लिए जिसे धन तू देगा या जिसका उपभोग प्रतिदिन करेगा, उसे ही मैं तुम्हारा धन मानता हूँ। फिर बाकी का धन किसके लिए रखकर जाते हो ।". वैदिक धर्म के व्यवहार पक्ष का प्रतिपादन करने वाले मनुस्मृति आदि ग्रन्थों में गृहस्थ के लिए प्रतिदिन दान की परम्परा चालू रखने हेतु 'पंचवैवस्वदेवयज्ञ' का विधान है। अर्थात् गृहस्थ के द्वारा होने वाले आरम्भजनित दोषों को कम करने के लिए भोजन तैयार होते ही सर्वप्रथम गाय, कुत्ता, कौआ, अग्नि एवं अतिथि इन पांचों के लिए ग्रास निकाला जाये । शील, तप या भाव का विधान वहाँ सभी गृहस्थों के लिए नहीं किया गया है। इस दृष्टि से भी दान को प्रथम स्थान दिया गया हो तो कोई आश्चर्य नहीं । इसीलिए परमात्मप्रकाश में स्पष्ट कहा हैं - "गृहस्थों के लिए आहारदान आदि परम धर्म है।" _ अपने-अपने युग में वैदिक, जैन और बौद्ध आचार्यों ने लोक-कल्याण के लिए, लोक मंगल के लिए और जीवन उत्थान के लिए बहुत से सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया था । उनमें दान भी एक मुख्य सिद्धान्त रहा है। प्रत्येक परम्परा ने दान के विषय में अपने देश और काल के अनुसार दान की मीमांसा की है, विचार किया है और दान पर अपनी मान्यताओं का विश्लेषण भी किया है। दान की परिभाषा और दान की व्याख्या सब की एक जैसी न भी हो, परन्तु दान को भारत की समस्त परम्पराओं ने सहर्ष स्वीकार किया है, उसकी महिमा की है। दान के सम्बन्ध में महावीर ने 'स्थानांगसूत्र' में कहा है - "मेघ चार प्रकार के होते हैं-एक गर्जना करता है, पर वर्षा नहीं करता । दूसरा वर्षा करता है पर गर्जना नहीं करता । तीसरा गर्जना भी करता है और वर्षा भी करता है। चोथा न गर्जना करता है और न वर्षा करता है । मेघ के समान मनुष्य भी चार प्रकार के हैं -'कुछ बोलते हैं देते नहीं । कुछ देते हैं, किन्तु बोलते नहीं। कुछ बोलते भी हैं और देते भी हैं । कुछ न बोलते हैं न देते ही हैं ।" महावीर के इस कथन से दान की महिमा एवं गरिमा स्पष्ट हो जाती
SR No.002432
Book TitleDan Amrutmayi Parampara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPritam Singhvi
PublisherParshwa International Shaikshanik aur Shodhnishth Pratishthan
Publication Year2012
Total Pages340
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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