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दान : अमृतमयी परंपरा उस हाथी ने एक विशाल घेरे में पेड-पौधे, घास आदि उखाड़कर साफ कर दिये और वहाँ समतल भूमि बना दी। आग से बचने और प्राण रक्षा करने के लिए निरापद स्थान की खोज में भागते-भागते जंगल के पशु-पक्षी दबादब आकर इस मण्डल में जमा होने लगे। हाथी सबको उदारता से इस मण्डल में आश्रय लेने देता था। कुछ ही देर में तो वह सारा सुरक्षित मण्डल वन्य जीवों से खचाखच भर गया था। सहसा इस हाथी ने अपने शरीर को खुजलाने के लिए एक पैर ऊँचा उठाया तभी एक खरगोश आया, जिसे मण्डल में कहीं जगह न मिलने से इस हाथी के उठाये हुए पैर के नीचे दुबककर बैठ गया। ज्यों ही हाथी पैर नीचे रखने लगा, त्यों ही उसके पैर को इस खरगोश का कोमल स्पर्श हुआ। हाथी ने देखा कि एक खरगोश उसके पैर की खाली जगह में बैठा है। अगर वह पैर नीचे रखेगा तो बेचारा यह खरगोश कुचलकर मर जायेगा । मृत्यु के भय से बचने के लिए ही तो बेचारा इस सुरक्षित स्थान में उसकी शरण में आया है। इस हाथी का हृदय करुणा से भर आया। उसने २० पहर तक यानी ढाई दिन तक अपना पैर ऊंचा रहने दिया, नीचे न रखा । तीसरे दिन दावानल शान्त हो गया पशु-पक्षी सभी अपने-अपने मनोनीत स्थलों को रवाना हो गये। मण्डल खाली देखकर यह हाथी ज्यों ही अपना पैर नीचे रखने लगा, त्यों ही धड़ाम से भूमि पर गिर पडा, क्योंकि तीन दिन तक पैरों से खडे रहने के कारण उसके पैरों में खून जम गया था। उसी समय हाथी ने करुणापूर्ण शुभ भावों से अपना शरीर छोड़ा और मरकर मनुष्य जन्म में श्रेणिक राजा के यहाँ राजकुमार मेघ के रूप में जन्म लिया।
यह है अभयदान के प्रथम पहलू का ज्वलन्त उदाहरण । इसी अभयदान के फलस्वरूप मेघकुमार की आत्मा पशु योनि से मुक्त होकर एक राजकुमार के रूप में अवतरित हुई।
इसके अतिरिक्त अभयदान का दूसरा पहलू है - अनेकों को प्राणसंकट से मुक्त कराकर अभय का संचार करना । वास्तव में ऐसे अभयदाता बहुत ही कम मिलते हैं। फिर भी यह बहुरत्ना वसुन्धरा है, इसमें ऐसे लोग भी है जो प्राणमोह का त्याग करके अनेकों को प्राण-संकट के भय से मुक्त कर देते हैं ।
अभयदान का तीसरा पहलू है - मृत्यु से भयभीत प्राणी की रक्षा