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सद्बुद्धि नहि आवे. संभव छे के ते दाननो दुरउपयोग करी ले, ओटले दातानी योग्यता माटे अहीं ठीक ओवी विगतो दर्शावी छे.
भारतमां प्रचलित छ दर्शनोना माध्यमथी दाननी विशदता जणावी छे तेथी जणाय छे लेखिकाओ दानधर्म विषयने पूरतो न्याय आपवा प्रयत्न कर्यो छे. वर्तमानमां जैन दर्शननी दाननी विशिष्टता दर्शावता जणावे छे के
जैन समाज में भामाशाह के नाम से पहचाने जाने वाले दानेश्वरी श्री दीपचन्दभाई गार्डी का जीवन प्रसंग जब मैंने पहलीबार पढ़ा था तो आश्चर्य चकित हो गई कि वर्तमान में भी ऐसे दानवीरों की कमी नहीं है । ९७ वर्ष की उम्र में भी १७ से १८ घंटे काम करते देखकर एक मिलने आए हुए महानुभाव ने पूछ ही लिया कि आपका स्वास्थ्य इतना अच्छा है उसका रहस्य क्या है ? गार्डीसाहब ने जवाब दिया- "मैं लोगों की सेवा करता हूँ उसका यह परिणाम है।" विशेष में उन्होंने कहा कि "जीवदया का पालन करने से, निःस्वार्थ भाव से तथा किसी प्रकार की अपेक्षा या बदले की भावना के बिना सत्कार्य करने वाले को भगवान लम्बी आयु देता है ।"
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इनके दान का क्षेत्र इतना व्यापक और विस्तृत है कि उनका वर्णन करना कठिन है । शिक्षा के क्षेत्र में, स्वास्थ्य के क्षेत्र में काफी योगदान है । आठ राज्यों में ५०० से भी ज्यादा सस्थाएँ है जिस में लाखों कर्मचारी कार्य करते हैं। प्रस्तुत पुस्तकना पूरा लेखनने जोतां अवुं लागे छे, लेखिकाने ते समये ज्यां ज्यां नजर पडे के विचार वहे त्यारे दान, दान, दाननो ज प्रभाव घेरी लेतो हशे. ओटले ज कदाच वर्षोथी तेमणे स्वयं दाननुं वहेण स्वीकार कर्तुं छे. अर्थात् तेमना तन, मन, धन दानधर्ममां ओत-प्रोत हता. पुस्तक प्रकाशन अ सत्कार्य गणीओ तो तेमना अंतरभावने आपणे दानथी परंपराओ थती निर्जरा गणीओ तो तेमां अतिशयोक्ति नथी. आथी आपणे सौ तेमना पुस्तकरूपी छाबने वधावीओ. दानधर्मनी वास्तविक प्रेरणा पामीओ. ओवो अवसर मळे तेवी भावना करीओ. लेखिका देवगुरुकृपामतना पूर्णं रीते पात्र थाय. तेमना परिवारने पण प्रेरणा मळे. सौने आवा कार्य करवानो अवसर मळे तेवी प्रभु प्रत्ये प्रार्थना करी विरमुं छं.
अक्षयतृतीया वरसीदानपर्व
सुनंदाबहेन वोहोरा