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दान : अमृतमयी परंपरा दृष्टि से दिया जाता है, जबकि कृतदान कृतज्ञता प्रगट करने के उद्देश्य से दिया जाता है।
इन दस प्रकार के दानों में धर्मदान सर्वश्रेष्ठ है। इसके बाद अनुकम्पादान, कृतदान, करिष्यतिदान, संग्रहदान, गौरवदान, भयदान, लज्जादान, कारुण्यदान और अधर्मदान ये उत्तरोत्तर निकृष्ट हैं।
____ स्थानांगसूत्र के दशम स्थान में इनका उल्लेख आता है। स्थानांगसूत्र की तरह बौद्धसाहित्य 'अंगुत्तरनिकाय' (८/३१) में भी दान के इसी तरह के आठ प्रकार बताए हैं।
___ उक्त दस भेदों के अलावा भी अन्य प्रकार से अन्य भेदों पर भी विचार किया गया है। यहाँ पर हम इस विषय में कुछ विचार करेंगे।
___ आचार्य जिनसेन ने महापुराण में विविध दृष्टियों से दान के चार भेद बताए हैं -
(१) दयादति, (२) पात्रदत्ति, (३) समदत्ति, और (४) अन्वयदत्ति ।
दान के उक्त चार प्रकारों का विशेष विवेचन दिगम्बर जैन साहित्य में प्राप्त होता है, श्वेताम्बर आचार्यों ने अन्य रूप में अर्थात् दस भेदों के रूप में उस पर विचार किया है और दिगम्बर आचार्यों ने चार दत्ति के रूप में । वास्तव में तो प्रत्येक कसौटी पर दान-धर्म को कसना उसके उद्देश्य और प्रकार पर विचार करना यही अभीष्ट रहा है।
१. देखिये दानों का तारतम्य पाराशर स्मृति में
धमार्थं ब्राह्मणे दानं, यशोऽर्थं नटनर्तके। भृत्येषु भरणार्थं, वैभवार्थं च राजसु ॥