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________________ १५६ दान : अमृतमयी परंपरा प्राणी वश में हो जाते हैं, दान से शत्रुता का नाश हो जाता है। दान से पराया भी अपना हो जाता है। अधिक क्या कहें, दान सभी विपत्तियों का नाश कर देता है।" कवि के इस कथन से दान की गरिमा और दान की महिमा स्पष्ट हो जाती है। इस प्रकार समग्र साहित्य दान की महिमा से भरा पड़ा है। संसार में न कभी दाताओं की कमी रही है और न दान लेने वाले लोगों की ही कमी रही है। दान की परम्परा संसार में सदा चलती ही रहेगी। आचारशास्त्र में दान : जैन परम्परा के आचारशास्त्र के ग्रन्थों में, फिर भले ही वे ग्रन्थ संस्कृत भाषा में हों अथवा प्राकृत भाषा मे हों, कुछ ग्रन्थ अपभ्रंश भाषा में भी लिखे गये हैं। इन सब ग्रन्थों में आचार के सिद्धान्तों का प्रतिपादन कहीं पर संक्षेप में और कहीं पर विस्तार में किया गया है। श्रावक के आचार एवं व्रतों का वर्णन करने वाले ग्रन्थ भी कम नहीं हैं। उन ग्रन्थों में सागारधर्मामृत, वसुनन्दी श्रावकाचार, अमितगति श्रावकाचार, उपासकाऽध्ययन, ज्ञानार्णव, योगशास्त्र तथा उपासकदशांगसूत्र मुख्य कहे जा सकते हैं। इनमें आचार के सूक्ष्म और स्थूल सभी प्रकार के भेदप्रभेद का वर्णन किया गया है। श्रावक के इस आचार में दान का भी समावेश हो जाता है। प्रत्येक ग्रन्थ में दान की गरिमा और दान की महिमा का वर्णन किया गया है। उसकी उपयोगिता का प्रतिपादन किया गया है। बताया गया है कि दान देना क्यों आवश्यक है ? देना जीवन के विकास का एक अनिवार्य सिद्धान्त है। दान देने से किस गुण की अभिवृद्धि होती है ? दान किस प्रकार का होना चाहिए ? दान का स्वरूप क्या है ? दान के प्रकार कितने हैं ? दाता के भाव कैसे रहने चाहिए ? दान देते समय दान लेने वाला पात्र अथवा ग्रहीता कैसा होना चाहिए? जो वस्तु दी जा रही है, वह कैसी होनी चाहिए ? दान देने की विधि क्या है? इस प्रकार दान के सम्बन्ध में बहमुखी विचार इन ग्रन्थों में किया गया है। जैन परम्परा के आचार्यों में, जिन्होंने आचार ग्रन्थ लिखे हैं, उनमें आचार्य अमितगति एक प्रसिद्ध आचार्य हैं । उनका ग्रन्थ है – 'अमितगति श्रावकाचार' इसमें बड़े ही विस्तार के साथ दान की मीमांसा की गई है। यह ग्रन्थ पंचदश परिच्छेदों में विभक्त है। उसके नवम, दशम और एकादश परिच्छेदों
SR No.002432
Book TitleDan Amrutmayi Parampara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPritam Singhvi
PublisherParshwa International Shaikshanik aur Shodhnishth Pratishthan
Publication Year2012
Total Pages340
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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