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________________ १५४ दान : अमृतमयी परंपरा है जिसमें संस्कृत, प्राकृत और पालि ग्रन्थों से संग्रह किया गया है। इसमें दान के विषय में अद्भुत सामग्री प्रस्तुत की गयी है। वैदिक, जैन और बौद्ध परम्परा के धर्मग्रन्थों और अध्यात्म ग्रन्थों में दान के विषय में काफी सुन्दर संकलन किया गया है। प्रवक्ता, लेखक और उपदेशकों के लिए एक सुन्दर कृति कही जा सकती है। एक ही ग्रन्थ में तीन परम्पराओं के दान सम्बन्धी विचार उपलब्ध हो जाते हैं। अपने-अपने युग में वैदिक, जैन और बौद्ध आचार्यों ने लोक-कल्याण के लिए, लोक मंगल के लिए और जीवन उत्थान के लिए बहुत से सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया था। उनमें से दान भी एक मुख्य सिद्धान्त रहा है। प्रत्येक परम्परा ने दान के विषय में अपने देश और काल के अनुसार दान की मीमांसा की है, दान पर विचार-चर्चा की है और दान पर अपनी मान्यताओं का विश्लेषण भी किया है । दान की मर्यादा, दान की सीमा, दान की परिभाषा और दान की व्याख्या सब की एक जैसी न भी हो, परन्तु दान को भारत की समस्त परम्पराओं ने सहर्ष स्वीकार किया है, उसकी महिमा की है। हिन्दी कवि और दान : हिन्दी साहित्य की नीतिप्रधान कविताओं में भी दान के विषय में काफी लिखा गया है । 'तुलसी दोहावली', 'रहीम दोहावली' और 'बिहारी सतसई' तथा 'सूर के पदों' में भी दान की गरिमा का और दान की महिमा का विस्तार से उल्लेख हुआ है । तुलसी का 'रामचरितमानस' तो एक प्रकार का सागर ही है, जिसमें दान के विषय में अनेक स्थलों पर बहुत कुछ लिखा गया है। हिन्दी के अनेक कवियों ने इस प्रकार के जीवन चरितों की रचना भी की है, जिनमें विशेष रूप से दान की महिमा का ही वर्णन किया गया है । रामभक्त कवियों ने, कृष्णभक्त कवियों ने और प्रेममार्गी सूफी कवियों ने अपने काव्य ग्रन्थों में, दान के विषय में यथाप्रसंग काफी लिखा है। दान की कोई भी उपेक्षा नहीं कर सका है। कबीर ने भी अपने पदों और दोहों में दान के विषय में यथा प्रसंग बहुत लिखा है। अपने एक दोहे में कबीर ने कहा है - "यदि नाव में जल बढ जाये और घर में दाम बढ़ जाये तो उसे दोनों हाथों से बाहर निकाल देना चाहिए, बुद्धिमानों का यही समझदारी का काम है।"
SR No.002432
Book TitleDan Amrutmayi Parampara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPritam Singhvi
PublisherParshwa International Shaikshanik aur Shodhnishth Pratishthan
Publication Year2012
Total Pages340
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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