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________________ १५० दान : अमृतमयी परंपरा इसमें कहा गया है कि महान् व्यक्ति से ही दान की मांग करो, हीन व्यक्ति से नहीं इस कथन में कालिदास ने दान का महान् रहस्य प्रकट कर दिया है। _ 'कुमारसम्भव' महाकाव्य में महाकवि कालिदास ने शिव और पार्वती का वर्णन किया है। शिव को कवि ने आशुतोष कहा है। कवि ने अनेक स्थलों पर शिव की दानवीरता का मधुर भाषा में वर्णन किया है। शिव ने अपनी भोग साधना में विघ्न डालने वाले कामदेव को जब तृतीय नेत्र से भस्म कर दिया, तो उसकी पत्नी रति विलाप करती हुई शिव के समक्ष उपस्थित होकर अपने पति का पुनः जीवन का वरदान मांगती है। रति के शोक से अभिभूत होकर शिव. उसे जीवनदान का वरदान दे बैठते हैं। यह कवि की अलंकृत भाषा है। परन्तु इस कल्पना से शिव की दानशीलता का स्पष्ट चित्रण हो जाता है, यही अभीष्ट भी कवि कालिदास ने अपने प्रसिद्ध महाकाव्य 'रघुवंश' में रघुवंश के राजाओं का विस्तार से वर्णन किया है। दिलीप, रघु, अज, दशरथ, राम और लव-कुश आदि का कवि ने प्रस्तुत काव्य में अनेक सर्गों में रघुवंशीय राजाओं की दानशीलता का वर्णन किया है। एक स्थल पर कहा गया है - "जैसे मेघ पृथ्वी से पानी खींचकर, फिर वर्षा के रूप में उसे वापस लौटा देता है वैसे ही रघुवंशीय राजा अपनी प्रजा से कर लेकर दान के रूप में वापस लौटा देते हैं।" रघुवंश काव्य में ही एक दूसरा सुन्दर प्रसंग है - "वरतन्तु का शिष्य कौत्स अपने गुरु को दक्षिणा देने का संकल्प करता है। वह याचना करने के लिए राजा रघु के द्वार पर पहुँचा, पर पता लगा कि राजा सर्वस्व का दान कर चुका है। निराश लौटने को तैयार, पर रघु लौटने नहीं देता । तीन दिनों तक रुक जाने की प्रार्थना करता है। राजा रघु उसकी इच्छा पूरी करके उसे गुरु के आश्रम में भेजता है।" रघुवंश महाकाव्य का यह प्रसंग अत्यन्त सुन्दर, हृदयस्पर्शी और मामिक बन पड़ा है । दान की गरिमा का और दान की महिमा का इससे सुन्दर चित्रण अन्यत्र दुर्लभ है। महाकवि कालिदास ने अपने तीन नाटकों में - शाकुन्तल, मालविकाग्निमित्र, और विक्रमोर्वशीय में - भी अनेक स्थलों पर दान के सुन्दर प्रसंगों की चर्चा की है।
SR No.002432
Book TitleDan Amrutmayi Parampara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPritam Singhvi
PublisherParshwa International Shaikshanik aur Shodhnishth Pratishthan
Publication Year2012
Total Pages340
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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