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________________ 15 अनुमोदना छे. आपणे ज्यांथी उत्तम वस्तु शीखवा मळे त्यांथी शीखवानी छे. जीवन उदात्त बनाववा आ मानव जन्म मळ्यो छे ! पूर्णता पामता सुधी सौओ गुण विकासनी केडीओ चाल्या ज करवानुं छे. गुण ग्रहण करवाना छे. दानधर्म पर तेमना हस्ते सुंदर लेखन थयुं छे. तेमां जैन जैनेतरना विविध शास्त्रोनो आधार लई तेमणे घणो श्रम उठाव्यो छे. केवळ दानधर्मने विविध पासाओथी एकज पुस्तकमां संकलन थयुं छे ते अजोड़ छे. दानधर्म विषे घणा विद्वानोना, साधुजनोना लखाण उपलब्ध छे. छतां ओक पुस्तककारे आ विरल संकलन थयुं छे तेम मने जणाय छे. आ तेमनी प्रशंसा माटे जणावती नथी पण लेखनने पूरेपुरुं वांचीने मारी भावना व्यक्त करूं छु. दानधर्मना अनेक विकल्पो होई शके. लेखिकाना शब्दोमां जोईओ : दान कभी भी निष्फल नहीं जाता। देखो, सुपात्र को दान देने से वह धर्म का कारण बनता है । दीन-दुःखी या अनुकम्पा योग्य पात्रों को देने से वह दाता की दया की प्रशंसा करता है। मित्र को देने से परस्पर प्रेम बढ़ाता है और शत्रु को दान देने से वैर भाव नष्ट करने में समर्थ है । भृत्य (सेवक) को दान देने से उसके दिल में भक्ति का प्रवाह पैदा करता है । राजा को भेट देने से सम्मान दिलाता है। चारण भाट आदि को देने से वह कीर्ति फैलाता है । कोई वार बनतुं होय छे के तप विषे सुंदर व्यक्तव्य रजु करनार, वळी श्रोताने रात्रिभोजन त्यागना भाव सुधी खेंची जाय पण पोते तेम करी शकता न होय. तत्त्व जेवा विषयने हृदयप्रेरक शैलीमां रजुआत करे पण तेनुं अनुभवज्ञान न होय. परंतु दान विषे पुस्तक लखनार आ प्रितमबहेने ते बाबतमां लेखनने साकार अने सार्थक कर्तुं छे. दान विषे पुस्तक लखवा साथे तेमना हाथे तेओ निरंतर दान कार्य करता रह्या छे. अटले ज कदाच तेमना वरद हस्ते आ लेखन थयुं छे, तेम लगभग छेल्ला बे वर्षमां तेओ निरांतनी पळोमां मारी साथे वार्तालाप करता त्यारे मने जाणवा मळतुं के आ महिने तेमणे जीवदयानो लाभ लीधो वळी बीजे महिने जाणवा मले के साधु जनोंना वैयावच्चनो लाभ लीधो वळी शत्रुंजय तीर्थ पर प्रतिष्ठा जेवा विविध कार्योनो लाभ लीधो छे. जरुरियात मंद वाळा प्रत्ये तो तेमनुं हृदय अत्यंत कोमळ थई जतुं अने तेमना हाथ वडे सहज सहाय थई जती. वळी
SR No.002432
Book TitleDan Amrutmayi Parampara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPritam Singhvi
PublisherParshwa International Shaikshanik aur Shodhnishth Pratishthan
Publication Year2012
Total Pages340
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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