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ॐ अर्हम नमः
दानधर्मनी उच्च गरिमा अने लेखिकानुं अभिवादन
प्रितमबहेननो मारी साथेनो परिचय लगभग बे वर्षनो छे, छतां तेमना सरळता अने विवेक जेवा गुणोथी तेओ पुराणा सत्संगी मित्र होय तेवू अनुभवू छु. यद्यपि तेओओ तो आध्यात्मिक साधना माटे मने शोधी लीधी छे अने तेवाज अर्पण भावथी संपर्कमा रहे छे. स्वयं लेखिका छे. पीएच.डी.नी डिग्री धरावे छे तेनी तो मने पछीथी खबर पडी कारण के तेओ मारी पासे नव तत्त्व, तत्त्वार्थसूत्र, ज्ञानसार जेवा विषयोनो अभ्यास करता त्यारे बाळसहज विद्यार्थीनी जेम भणवा बेसता, त्यारे मने जरा पण ख्याल आव्यो न हतो के तेओ लेखिका अने अभ्यासी
तेमनी साथेना वार्तालापथी जाणवा मळ्युं के तेमने आत्मसाधक, अध्यात्म अनुभव विदूषी स्व. साध्वी महाराजश्री पद्मलताजीनी निश्रामां आत्मबोधनो पाठ मळेलो छे. तेओ तेमनी गुरुभक्तिथी रंगायेला छे, ते उपरांत अन्य पू. आचार्य श्री शीलचंद्राचार्य, पं. श्री मुनिचंद्रजी, पं. श्री मुक्तिचंद्रजी, पं. श्री यशोविजयजी भगवंतोना पण तेओ सेवा भावे परिचयमां छे. आ लेखनमां आ मुनिराजोनी प्रेरणा मळी छे. तेने कारणे तेमनामां तत्त्व जिज्ञासानी विवेकपूर्ण भावनांना दर्शन थाय छे. मारा पर तेमनो प्रभाव तेमनी आ जिज्ञासाना कारणे प्रथमथी ज पहेली बेठके पडेलो अने ते सहज भावे विकसतो रह्यो.
रोजनी जीवनचर्यामां धर्म अनुष्ठानोनी तेमनी रूचि सारी छे. गृहस्थ धर्म साथे आत्मश्रेय साधवं ते तेमनो हार्दिक आदर्श छे. तेमां उपर जणाव्युं तेवा साधु भगवंतोनी कृपा मेळवता रहे छे. साधु भगवंतोना परिचयथी तेमनामां विवेकनो योग्य मेळ छे. आ तेमनी प्रशंसा माटे नथी लखती पण तेमना प्रत्ये मारी हार्दिक