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दान : अमृतमयी परंपरा इसीलिए वैदिक ऋषि ने समाज सम्बद्ध मानव को कहा है -
"शतहस्तं समाहर, सहस्रहस्तं संकिर ।" १ . - अगर तुम सौ हाथों से धनादि साधनों बटोरते हो, तो तुम्हारा कर्त्तव्य है, हजार हाथों से उसे (जरूरतमन्दों में) वितरित कर दो, बाट दो, दे दो।
१. ऋग्वेद ३/२४/५