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________________ दान से लाभ १०५ यह था दान का चमत्कार जिसने संगम को दरिद्रावस्था में से उठाकर शालिभद्र के रूप में विपुल ऋद्धि एवं सुख-सामग्री से सम्पन्न बना दिया । जैन स्थापत्य कला को उच्च शिखर पर पहुँचाने वाले प्रसिद्ध जैन श्रावक वस्तुपाल-तेजपाल गुजरात के राजा के महामंत्री थे । दोनों भाई बड़े दानवीर, संघसेवक एवं दुःखियों के हमदर्द थे । इनके विषय में कहा जाता है कि उन्हें दान के प्रभाव से ऐसा वरदान प्राप्त था कि जहाँ कहीं ठोकर मारते, वहीं खजाना निकल आता। इसी प्रकार मुर्शिदाबाद के जगत् सेठ भी बड़े दानपरायण थे । वास्तव में दिया हुआ दान कभी व्यर्थ नहीं जाता । कई दफा तो दान का चमत्कार यहीं का यहीं प्रत्यक्ष नजर आ जाता है, कई दफा परलोक में प्राप्त होता है। ___ अहमदाबाद के धर्मवीर सेठ हठीभाई के बारे में भी कहा जाता था कि वे पारसमणि थे। वे लोहे को स्पर्श करते तो उसका सोना बन जाता था । इनके एक बार के दान में बन्दे का बेड़ा पार हो जाता । कलियुग के ये ऐसे दाता थे। इनके समय की एक घटना है सतारा नाम की गरीब बुढ़िया ने जब इनके बारे में सुना तो वह अपने इकलौते लडके को जो रुग्ण शय्या पर इलाज के अभाव में तड़फ रहा था। पर सेठ की दानवीरता के बारे में सुनकर उसके दिल में आशा का संचार हुआ। वह अपनी सारी शक्ति बटोरकर हाथ में लठिया ली और दूसरे हाथ में लोहे का टुकडा लेकर हाफती, श्वास लेती धीरे-धीरे हठीभाई सेठ की हवेली पर पहुंची । विचारमग्न सेठ के दाहिने पैर से ज्यों ही वह लोहे का टुकड़ा छुआने गई, त्यों ही सेठ एक दम चौंक उठे । बुढ़िया की यह विचित्र चेष्टा देखकर सेठ ने जरा गर्म होकर पूछा - "बुढ़िया माँ जी ! यह क्या कर रही हो?" बुढ़िया बोली- "मैंने सुना है कि आप पारसमणि हैं । आपके स्पर्श से लोहा भी सोना बन जाता है। माफ करना, खुदा के वास्ते, मैं गरीब अभागिनी हूँ। जरूरतमंद हूँ। मुझ में अक्ल नहीं है। इसी से आपके दरवाजे पर आई हूँ लोहे का सोना बनाने के लिए । मेरा गुनाह माफ करना।" सेठ ने बुढ़िया पर एक शान्त दृष्टि डाली-निखालिस चेहरा, पीड़ा से
SR No.002432
Book TitleDan Amrutmayi Parampara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPritam Singhvi
PublisherParshwa International Shaikshanik aur Shodhnishth Pratishthan
Publication Year2012
Total Pages340
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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