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दान से लाभ
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संगम के मन में खीर खाने की प्रबल इच्छा जाग्रत हो गई । उसे क्या
पता था कि खीर के लिए पैसों का प्रबन्ध कैसे होगा ? घर में माँ के आते ही संगम ने कहा माँ ! आज तो हम खीर खाएँगे । खीर बना दे । सबके घरों में आज खीर बनेगी । हमारे यहाँ भी आज खीर ही बननी चाहिए ।"
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धन्ना एकदम सन्नाटे में आगई। सोचने लगी " मेरी कमाई तो इतनी है नहीं, बेटा खीर माँगता है । बेचारे ने कभी खीर खाई नहीं और आज ही पहली बार माँगी है। पर कहाँ से ला दूँ। मजदूरी तो बहुत ही कम मिलती है, इतने में तो हम दोनों का गुजारा भी मुश्किल से होता है । हाय ! वे दिन कैसे अच्छे थे। इसके पिता के रहते हम गाँव में रहते थे, वहाँ दूध-घी की कोई कमी नहीं थी घर में। पर अब तो वे अच्छे दिन पलट गए। क्या करूँ, कहाँ खीर बना दूँ ?" यों सोचकर धन्ना रोने लगी । संगम अपनी माँ को रोते देख उदास हो गया । पूछने लगा "माँ ! तू रोती क्यों है ?" धन्ना ने संगम को संक्षेप में अपनी परिस्थिति समझाई और कहा कि " फिर कभी खीर बनाएँगे, आज जाने दे ।" पर संगम खीर के लिए मचल उठा। वह किसी भी तरह नहीं माना तो धन्ना यह कहकर चल दी कि “अच्छा, मैं जाती हूँ, कहीं, से मजदूरी करके खीर का सामान लाऊँगी।”
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धन्ना कि आँखों से आज सावन-भादों बरस रहा था । वह धनिकों के यहाँ सबकी परिचित थी । सेठानियाँ उसकी आँखों में आँसू देखकर पूछने लगीं“धन्ना ! आज तुम्हारी आँखों में आँसू क्यों ? तुम्हें किस बात की चिन्ता है ?" धन्ना ने आँसू पोंछते हुए कहा- "नहीं ऐसी कोई खास बात नहीं है | लेकिन आज संगम खीर खाने के लिए मचल उठा है । कहने लगा- " खीर ही खाऊँगा, आज तो ।"
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धन्ना ने सेठानियों के घर काम करके खीर बनाने का सामान लेकर घर पहुँची । घर पर संगम ने देखा कि माँ खीर का सामान लेकर आई है तो वह बहुत प्रसन्न हुआ । धन्ना ने हंडिया में दूध गर्म करने को रखा और उसमें चावल और शक्कर डालकर जाने लगी । जाते-जाते वह संगम से कह गई - " मैं घरों में काम करके लगभग एक घण्टे में आ जाऊँगी। जब खीर पक जाय तो हंडिया नीचे उतार लेना और थाली में ठंडी करके खा लेना । अच्छा, कर लेगा न ?"