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दान से लाभ
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सच में दान का अमृत जीवन में किस प्रकार से सुख, शांति, समता और आनन्द का स्रोत बहाता है, समाज में व्याप्त विषमता, दरिद्रता, दैन्य और दुःखों के जहर को नष्ट करता है और मानव को सचमुच में अमर जीवन प्रदान करने में समर्थ होता है ।
३. दान : कल्याण की नींव :
परम्परा से मूर्छा का त्याग होने के कारण दान से सम्यक्त्व, जो मोक्ष प्राप्ति का मूल मन्त्र - बीज मंत्र है, उसकी प्राप्ति होती है, लौकिक और परलौकिक अगणित सुख-वैभव का खजाना खोलने के लिए दान ही वह दिव्य चाबी है धर्मरूप महल का शिलान्यास दान से ही होता है ।
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दान के दिव्य प्रभाव से ही प्रायः महापुरुषों को सम्यक्त्व की उपलब्धि हुई है। सम्यक्त्व का सम्बन्ध आत्मा के शुद्ध परिणामों से है, लेकिन वे परिणाम भी किसी न किसी निमित्त को लेकर ही होते हैं, कई जीवों के परिणाम ऐसे भी होते हैं, जिनमें कोई बाह्य निमित्त नहीं होता । इसीलिए तत्त्वार्थसूत्र में सम्यग्दर्शन दो प्रकार का बताया है -
“तन्निसर्गादधिगमाद् वा ।"
वह सम्यग्दर्शन निसर्ग (स्वभाव) से तथा अधिगम (गुरू का उपदेश, शास्त्र या अन्य किसी वस्तु के निमित्त ) से होता है । जहाँ सम्यग्दर्शन पूर्व जन्म के संस्कारवश स्वाभाविक रूप से होता है, वहाँ तो कोई बात ही नहीं, पर जहाँ किसी न किसी महापुरुष के उपदेश आदि निमित्त को लेकर सम्यग्दर्शन होता है वहाँ दान सम्यग्दर्शन का मुख्य बहिरंग कारण बनता है । दान के निमित्त से किसी न किसी महापुरुष से उपदेश, प्रेरणा या बोध प्राप्त होता है । जिससे बोधि बीज (सम्यक्त्व बीज) की प्राप्ति होते देर नहीं लगती ।
भगवान महावीर को सर्वप्रथम 'नयसार' के भव में सम्यक्त्व की उपलब्धि हुई थी । एक बार नयसार जंगल में लकड़ियाँ इकट्ठी कर रहा था । तभी एक उत्तम साधु आते हुए दिखाई दिए। ये मार्ग भूल गये थे और इधरउधर भटकते हुए अनायास ही वहाँ आ पहुँचे थे। नयसार ने जब उन्हें दूर ही से देखा, उसके सरल और स्वच्छ हृदय में महामुनि के प्रति सद्भावना जगी, वह सामने गया और उन्हें वन्दन - नमन करके कहा