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________________ - समास विश्वभरमें जो जैनशासनकी प्रभावना की है और युग-युगांतर तक अपनी यश-कीर्ति को व्याप्त की है इनके मूलमें है संपत्तिदान ! यह तो लोकोत्तरक्षेत्रकी बात हुई ! कुछ अपने आसपास के जगत को भी दृष्टिगोचर बनाइए साफसाफ पता चल जायेगा कि श्रुतदान, माहितीदान, अभयदान, धनदान, जैसे दानों यदि न होवे तो इस जगत की कल्पना ही गगनकुसुमवत अशक्य है ! लेकिन, दान तो वस्तुतः वही है जो मोक्षप्राप्ति का अमोघ उपाय हो । शास्त्रकार उन्हीं दानों की प्रशंसा करते आए हैं ! इसीलिए कहा जाता है कि खानदान वही है जो भ्रष्टाचारादि रूप से खाता न हो, मगर दान करता हो । खानदान को खाने में भोगोपभोग में ताद्दशरुचि नहीं होती है ! याद्दशरुचि सुपात्रदान, अनुकंपादान, अभयदान, वात्सल्यदान में होती है। क्या है ऐसे दान का स्वरूप जो खुराण्ट व्यक्ति का भी खानदान में परावर्तन करता है ? क्या है उनके भेद-प्रभेद ?
SR No.002432
Book TitleDan Amrutmayi Parampara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPritam Singhvi
PublisherParshwa International Shaikshanik aur Shodhnishth Pratishthan
Publication Year2012
Total Pages340
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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