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________________ दान से लाभ विषमता मिटाने का इससे भी बढ़कर सामूहिक दान का ज्वलन्त उदाहरण है – माण्डवगढ का । वर्षों पहले की बात है । माण्डवगढ के जैन बन्धुओं ने यह निश्चय किया कि हम जैसे धर्म से समान हैं, वैसे ही अर्थ से भी सबको समान रखेंगे । हमारे नगर में बसने वाला कोई धनवान भी नहीं कहलायेगा और न कोई निर्धन कहलायेगा | जो भी जैनबन्धु यहाँ बसने के लिए आता, उसका आतिथ्य प्रत्येक घर से एक-एक रुपया और एक-एक इंट देकर किया जाता । यानी इस प्रकार के सामूहिक दान से प्रत्येक आगन्तुक को वहाँ बसे हुए एक लाख घरों से एक लाख रुपये व्यापार के लिए और एक लाख इंटे घर बनाने के लिए दी जाती । माण्डवगढ के जैनों के इस दान के नियम ने उन्हें और नगर को अमर बना दिया । आज भी नालछाप से लेकर माण्डवगढ़ तक की ६ मील लम्बी खण्डहर के रूप में एक सरीखे मकानों की पंक्ति इस सामूहिक दान की कहानी कह रही है ९३ इसीलिए अनेक प्रमाणों और अनुभवों के आधार पर हम यह कह सकते हैं कि दान ही वह वज्र है, जो अमीरी और गरीबी की विषमता और विभेद्र की दीवारें तोड सकता है। दान की अमोघ वृष्टि ही, मानव जाति में प्रेम, मैत्री, सद्भाव और सफलता की शीतल धारा प्रवाहित कर सकती है । २. दान : जीवन का अमृत तत्त्व ( जीवन्त तत्त्व ) : दान को मानव जीवन के लिए अमृत कहा है । अमृत में जितने गुण होते हैं, उतने ही नहीं बल्कि उससे भी बढ़कर गुण दान में हैं भारतीय संस्कृति के एक विचारक ने कहा है - “दानामृतं यस्य करारविन्दे, वाचामृतं यस्य मुखारविन्दे । दयाऽमृतं यस्य मनोऽरविन्दे, त्रिलोकवन्द्योहि नरो वरोऽसौ ॥" · जिसके करकमलों में दानरूपी अमृत है, जिसके मुखारविन्द में - वाणी की सरस सुधा है, जिसके हृदयकमल में दया का पीयूष निर्झर बह रहा है, वह श्रेष्ठ मनुष्य तीन लोक का वन्दनीय - पूजनीय है । कहने का आशय यह है कि दान तभी अमृत बनता है जब हाथ के साथ वाणी और हृदय एकजुट होकर दान दें । कर तभी कमल बनता है जब उसमें
SR No.002432
Book TitleDan Amrutmayi Parampara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPritam Singhvi
PublisherParshwa International Shaikshanik aur Shodhnishth Pratishthan
Publication Year2012
Total Pages340
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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