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दान से लाभ
"दत्तं मित्तानि गंथति ।" १
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• दान से मित्र गाढ़े बन जाते हैं ।
अत्रिसंहिता में भी इसी बात का समर्थन किया गया है.
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"नास्ति दानात् परं मित्रमिह लोके परत्र च । "
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दान के समान इस लोक और परलोक में कोई मित्र नहीं है ।
इससे भी आगे बढ़कर कहें तो दान एक वशीकरण मंत्र है, जो सभी प्राणियों को मोह लेता है, पराया (शत्रु) भी दान के कारण बन्धु बन जाता है, इसलिए सतत दान देना चाहिए । दान की देवता, मनुष्य और ब्राह्मण सभी प्रशंसा करते हैं । दान से मनुष्य उन समस्त मनोवांछित वस्तुओं को प्राप्त कर ता है, जिनकी वह कामना करता है ।
महाराष्ट्र में महिला जागरण के अग्रदूत महर्षि कर्वे को पत्रकार परिषद में प्रश्न पूछा गया कि “आपकी शतायु का रहस्य क्या है ? लोक अनुमान ही अनुमान में गुम हैं कि आप नियमित व्यायाम करते होंगे या दूध और फल पर रहते होंगे, इस कारण आपकी आयु सौ साल की होगी ।"
उत्तर में कर्वे ने कहा "मेरे यहाँ कई दशकों पहले एक नौकरानी रहती थी । वह एक दिन अपने पति के आपरेशन के लिए एक हजार रुपये माँगने आई। पति के स्वस्थ हो जाने पर रुपये वापस लौटाने की बात थी । परन्तु दुर्भाग्य से ओपरेशन काल में उसके पति का देहान्त हो गया । "
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वह नौकरानी रोती हुई मेरे पास आई और आँसू बहाते हुए बोली "मुझे सबसे अधिक वेदना तो इस बात की हो रही है कि मैं अब आपके रुपये कैसे चुका सकूँगी । अब तो मेरे वेतन में से आप प्रति मास काटते रहना ।" मैंने (कर्वे ने) गद्गद होकर कहा - "बहन, तेरे इतने महान दुःख के
१. सुत्तनिपात १/१०/७
२. दानेन सत्त्वानि वशीभवन्ति, दानेन वैराण्यपि यान्ति नाशम् ।
परोऽपि बन्धुत्वमुपैति दानात्, तस्माद्धि दानं सततं प्रदेयम् ॥
३. दानंदेवाः प्रशंसन्ति मनुष्याश्च तथा द्विजाः । दानेन कामनाप्नोति यान्काश्चिन्मनसेच्छति ॥
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धर्मरत्न |