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ऐसे तो कई उत्तम वाक्य के मोती पुस्तक में यत्र तत्र सर्वत्र बिखरे हुए हैं। यहां तो कितने लिखें ? पढ़ने पर ही विशेष रूप से पता चलेगा।
एक ही पुस्तक में दान-विषयक इतनी सारी सामग्री पाठक को दानमय बना देती है, दान के बारे में विचारने के लिए विवश बना देती है ।
प्रीतम बहन का परिचय अभी पालीताणा चातुर्मास में ही हुआ। वह भी सिर्फ ५-१० मिनिट का ही । फिर भी उसमें ज्ञान संबंधी ही बाते थी । वार्तालाप से ही पता चल गया कि यह आत्मा है विद्या-व्यासंगी। पुस्तक देखने से विद्या-व्यासंग का सम्यक् पता चला ।
गुर्जर ग्रन्थरत्न कार्यालय वाले कान्तिलाल गोविंदजी व सुनंदाबेन वोहोरा के सूचन से यह लिखना हुआ । अतः इन दोनों का स्मरण स्वाभाविक
आशा है, पाठक-गण दान-विषय में रूचिवाले बन कर प्रीतम बहन के परिश्रम को सार्थक बनायेंगे । लेखिका को पुनः पुनः अभिनंदन और उनको तैयार करने वाले सुनंदा बहन को भी । जामनगर
- पं. मुक्तिचन्द्रविजय पाठशाला उपाश्रय
__ - पं. मुंनिचन्द्रविजय वि.सं. २०६८ श्री आदिनाथ-जन्म-दीक्षाकल्याणक-दिन दि० १५-३-२०१२, गुरुवार