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________________ हिमाचल प्रदेश विधा देवी यन्त्र मूलनायक श्री आदिश्वरजी ऋषभ जिनराज मुज आज दिन अति भलो, गुण नीलो जेणे तुज नयण दीठो दुःख टल्यां सुख मल्यां स्वामी तुज निरखतां, सुकृत संचय हुओ पाप नीठो। ऋषभ, कल्पशाखी फल्यो कामघाट मुज मिल्यो, आंगणे अमीयना मेह वूठा मुज महीराण महीभाण तुज दर्शने, क्षय गया कुमति अंधार जुठा। ऋषभ, कवण नर कनक मणि छोडी तृण संग्रहे, कवण कुंजर तजी करह लेवे कवण बेसेतजी कल्पतरुबाउले, तुज तजी अवर सुर कोण सेवे। ऋषभ. एक मुज टेक सुविवेक साहिब सदा, तुज विना देव दुजेन ईहं तुज वचनराग सुख सागरे झीलतो, कर्मभर धर्म थकी हुं न बीहुं। ऋषभ, कोडी छे दास विभु ताहरे भल भला, माहरे देव तुं एक प्यारो पतित पावन समो जगतनो उद्धारकर, महेर करी मोहे भवजलधि तारो। ऋषभ. मुक्ति थी अधिक तुज भक्ति मुज मन वसी, जेहशुसबल प्रतिबंध लागो चमक पाषाण जिम लोहने खेंचश्ये, मुक्तिने सहज तुज भक्ति रागो। ऋषभ, धन्य ते काय जेणे पाय तुज प्रणमिया, तुज थुणे जेह धन्य धन्य जीहा धन्य ते हृदय जेणे तुज सदा समरीया, धन्य ते रात ने धन्य दीहा। ऋषभ. गुण अनंता सदा तुज खजाने भर्या, एक गुण देत मुज शुं विमासो रयण एक देत शी हाण रयणायरे, लोकनी आपदा जेणे नाशो। ऋषभ. गंग सम रंग तुज कीर्ति कल्लोलिनी, रवि थकी अधिक तप तेज ताजो नय विजय बुध सेवक हं आपरो, जस कहे अब मोहे भव निवाजो. ऋषभ.
SR No.002431
Book TitleShwetambar Jain Tirth Darshan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendrasuri
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year2000
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size75 MB
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