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________________ बंगाल विभाग מגירות बाबु का जैन मंदिरजी मूलनायक श्री शीतलनाथजी यह मंदिर कलकत्ता शहर में शाम बाजार के माणक तले में है। इस मंदिर को बद्रीनाथ टेम्पल और पार्श्वमंदिर कहते हैं। यह मंदिर कलकत्ता में लाला कालकादासजी के पुत्र रायबहादुर बद्रीदासजी ने स्वयं की माताश्री खुशालकुंवर की प्रेरणा से बना हुआ है। विदेशी व्यापार केन्द्र था। जो सप्तग्राम नाम से जाना जाता था परन्तु समुद्र से दूर होने के कारण और सरस्वती नदी सूख जाने से वहां का व्यापार सूता नूरी, गोविंदपुर और कालिकात में आया। सूता नूरी यानि आज का बड़ा बाजार, गोविंदपुर यानि आज का डेल हाउसी स्कवेर हेस्टिंग फोर्ट विलियम है । कालिकात यानि आज का कालीघाट और भवानीपुर है। यह तीनों गांव मिलाकर जोन चारनक नामक अंग्रेज ने कलकत्ता शहर की नींव रखी। इस नगर के सुसम्पन्न बनाने में व्यापार के मुख्य केन्द्र के रूप में विकसित करने में जैन श्रेष्ठीयों का मुख्य हाथ रहा है। उन्होंने धर्म प्रभावना और जनकल्याण के कार्यों में हर समय अग्रणीय कार्य किया है। रायबहादुर बद्रीदासजी ने मंदिर के लिए भव्य प्रतिमा आज का कलकत्ता ३०० वर्ष पूर्व जंगल था । हुगली की तलाश की। एक महात्मा ने आगरा रोशन मोहल्ले के मंदिर के गर्भगृह में ऐसी प्रतिमा होने का संकेत किया और महात्मा अदृश्य हो गये। सांकेतिक स्थान पर तलाश करते १७ वें सेक मे अधचंद्रपाल द्वारा प्रतिष्ठा हुई यह श्री शीतलनाथजी की प्रतिमा प्राप्त हुई । बहुत विशाल और अद्भुत कला वाला भव्य मंदिर तैयार होने पर ई. सं. १८६७ में पू. आचार्य श्री कल्याणसूरीश्वरजी म. के द्वारा प्रतिष्ठा कराई। इस मंदिर की देखभाल उनका ही परिवार करता है। ९६ केनींग स्ट्रीट में श्री महावीर स्वामी का वीरविक्रम प्रासाद है । उसकी अंजनशलाका प्रतिष्ठा पू. आ. श्री विजयरामचंद्रसूरीश्वरजी महाराज की निश्रा में सं. २०१० में हुई है। (५४७
SR No.002431
Book TitleShwetambar Jain Tirth Darshan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendrasuri
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year2000
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size75 MB
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