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________________ उत्तर प्रदेश (५३७ ऋषभदेव का पारणा - पादुका मूलनायक श्री शांतिनाथजी यह तीर्थ मेरठ जिले में है। यहां श्री ऋषभदेवप्रभुजी का वरसीतप का श्री श्रेयांसकुमार द्वारा ईक्षुरस से आखा तीज को पारणा हुआ था। श्रेयांसकुमार ने यहीं स्तूप बनाया था। श्री शांतिनाथजी श्री कुंथनाथजी और श्री अरनाथजी तीनों तीर्थंकर तथा चक्रवर्ती थे। उनके गर्भ, जन्म, दीक्षा और केवलज्ञान ये चारों कल्याणक यहीं हुए हैं। प्रभु महावीर के उपदेश से राजा शिवराज ने जैन धर्म स्वीकार कर दीक्षा ली थी। संप्रति राजा ने यहीं मंदिर बनवाया था विक्रम सं. ३८६ में श्री यक्षदेव सू. म. तथा २४७ वर्ष पूर्व आ. श्री सिद्धसूरिजी म. वि. सं. १९९ में श्री रत्नप्रभ सू. म. (चोथा) वि. सं. २३५ आसपास आ. ककसू. म. (चोथा) यहां पधारे थे। राजा कुमारपाल ने कुरुदेश जीतकर यहां यात्रा की थी। श्री जिनप्रभ सू. म. सं. १३३५ के आसपास दिल्ली से विशाल संघ के साथ यहां आये थे। उस समय यहां श्री शांतिनाथजी, श्री कुंथुनाथजी और श्री अरनाथजी, श्री मल्लिनाथजी ऐसे चार मंदिर थे। तथा एक अंबिकादेवी का मंदिर था ऐसा उल्लेख है। १७ वीं सदी में श्री विनयसागरजी म. आये उन्होंने पांच स्तूप, पांच मंदिर बताये हैं। सं. १६२७ में खरतर गच्छी आ. श्री जिनचंद्र सू. म. पधारे तब चार स्तूप बताये हैं । १८वीं सदी में श्री सौभाग्य विजयजी ने तीन स्तूप बताये हैं। जीर्णोद्धार करके वि. सं. २०२१ मगशिर सुदी १० को प्रतिष्ठा हुई है। विकास योजना में १०८ फुट ऊंचे श्री अष्टापद तीर्थ निर्माण करने का निर्णय हुआ है। जिसमें अष्टापद तीर्थ की ८ सीढ़िया बनेगी और उपर चत्तारी अट्ठ दश हो इस प्रकार चार दिशा में प्रभुजी विराजमान होंगे। इस निर्माण के लिए धनराशि एकत्रित करने के लिए दान स्वीकार करते हैं परन्तु उसमें लक्की ड्रा योजना रखी है। जो आत्म कल्याण की बुद्धि का नाश करती है। अत: यह योजना नहीं करनी चाहिए। श्रीपार्श्वनाथ प्रभु ने राजा श्रीस्वयंभूको प्रतिबोध करके जैन बनाया था। वह प्रभु के प्रथम गणधर बने थे। बारह में से छ: चक्रवर्तियों की यह जन्मभूमि है। रामायण काल के परशुराम की तथा पांडवों और कोरवों की यह जन्मभूमि है। हर वर्ष कार्तिक सुदी १५ तथा वैशाख सुद ३ को यहां मेला लगता है। अक्षय तृतीया का जुलूस निकलता है। श्री मल्लिनाथजी के समवशरण स्थल पर श्वे. देरीओं में प्रभु के चरण है एक देरी में श्री आदिनाथजी के चरण हैं। प्राचीन प्रतिमाजी सिक्का शिलालेखों यहां भूगर्भमें से प्राप्त होते हैं। पास का रेल्वे स्टेशन मेरठ ३७ कि.मी. है बस टेक्सी मिलती है। दिल्ली से मेरठ ६० कि.मी. है बस स्टेशन पास में है। श्वेतांबर धर्मशालाएं तथा भोजनशाला है। श्री हस्तिनापुर जैन श्वे. तीर्थ समिति मु. हस्तिनापुर (जि.-मेरठ) उ. प्र. फोन : ४०. . M
SR No.002431
Book TitleShwetambar Jain Tirth Darshan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendrasuri
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year2000
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size75 MB
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