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(१९) अब आगे उन्नीसवीं टोंक जो प्रमुख है वह जलमंदिर आता है। यहां मूलनायक तेईसवें श्री शामलिया पार्श्वनाथ भगवान है। प्रभुजी की प्रतिमा बहुत सुंदर है । पहाड़ों की गोद में मंदिर महल जैसा लगता है । चारों तरफ हरियाली है। यहां स्नान, सेवा-पूजा की उत्तम व्यवस्था है। पास में दो कुंड है । पर्वत का चालु जल प्रवाह इस कुंड में बहता रहता है। और दो छोटी धर्मशालाएं हैं।
(२०) यहां से आगे जाते श्री शुभ गणधर की बीसवीं टोंक आती है।
(२१) इक्कीसवीं टोंक पंद्रहवें श्री धर्मनाथ भगवान की है। प्रभुजी जेठ सुदी पंचमी को १०८ मुनिराजों के साथ मोक्ष पधारे हैं।
(२२) बाईसवीं टोंक शाश्वता श्री वारिषेण प्रभुकी है। (२३) तेईसवीं टोंक श्री वर्धमान शाश्वत जिन की है।
श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग - २
(२४) चौबीसवीं टोंक पांचवें श्री सुमतिनाथ प्रभु की है। प्रभुजी यहाँ से चैत्र सुदी नवमीं के दिन एक हजार मुनियों के साथ मोक्ष पधारे हैं।
(२५) पच्चीसवीं टोंक सोलहवें श्री शांतिनाथ भगवान की है। वैशाख वदी तेरस के दिन ९०० मुनियों के साथ भगवान यहां से मोक्ष पधारे हैं।
(२६) छब्बीसवीं टोंक श्री महावीर भगवान की है। प्रभुजी पावापुरी में मोक्ष पधारे हैं । दर्शनार्थ यहां चरण स्थापित किए हैं।
(२७) सत्ताईसवीं टोंक सातवें श्री सुपार्श्वनाथ प्रभुजी की है। प्रभुजी माह वद सप्तमी को ५०० मुनियों के साथ यहां से मोक्ष पधारे हैं।
(२८) श्री विमलनाथजी है। और वह ६००० मुनि के साथ जेठ वदी सप्तमी के दिन मोक्ष पधारे।
श्री जलमंदिर सन्मुख दर्शन