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बिहार विभाग
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राजगृही पाचवा पहाड मंदिर
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राजगृही चौथा पहाड स्वर्णगिरि नीचे के मंदिर में बांयीतरफ के आदिनाथजी
- (१) प्रथम विपुलगिरि पहाड़ (११५० सीढी) श्री मुनिसुव्रत स्वामी (२) द्वितीय रत्नगिरि पहाड (१३०० सीढ़ी) श्री चंद्रप्रभुजी श्री शांतिनाथजी समवशरण (३) तृतीय उदयगिरि पहाड (७९० सीढ़ी) श्री पार्श्वनाथजी (४) चौथा स्वर्णगिरि पहाड बंद आदिनाथ भगवान चरण पादुका (५) पांचवां वैभारगिरि पहाड (६०० सीढ़ी) श्री मुनिसुव्रत स्वामी
राजगिरि गांव के पास में पांच पर्वत के उपर यह तीर्थ है।
यह तीर्थ श्री मुनिसुव्रत स्वामी के कल्याणकों से भूषित है। उनके गर्भ, जन्म, दीक्षा और केवलज्ञान यह चार कल्याणक यहाँ हुए हैं।
तलहटी मंदिर से आगे प्राचीन श्री मुनिसुव्रत स्वामी है। स्वर्णगिरि यात्रा बंद है। उसके मूल मूलनायक नीचे मंदिर में श्री आदिनाथजी बायीं तरफ है।
यहाँ हरिवंश के जरासंघ नामके प्रतिवासुदेव हुए हैं। उन्होंने मथुरा के राजा श्री कंस के साथ स्वयं की पुत्री जीवयशा की शादी की थी और उस कंस के अत्याचार से
श्री कृष्ण ने उसका वध किया था। जरासंध के उपद्रव से समुद्र विजय राजा ने पश्चिम समुद्र आकर द्वारिका नगरी बसाई थी। जरासंध के साथ श्री कृष्ण का युद्ध हुआ तब श्री कृष्ण ने अट्ठम तप कर श्री पार्श्वनाथ भगवान की प्रतिमा श्री नेमनाथ भगवान के वचन से रखी थी। वहाँ तक राजा की विद्या से दो शुद्ध बने लश्कर की श्री नेमकुमार लश्कर घूमते शंख फूंकते-फूंकते घूम कर रक्षा की थी। उससे वे शंखेश्वर कहलाये । मूर्ति रखकर श्री कृष्ण ने उसके न्हवन जल से सेना का उपद्रव टाला था और हर्ष से शंख फूंककर शंखेश्वर गांव बसाकर प्रतिमा पधराई थी उससे वह शंखेश्वरा पार्श्वनाथजी के नाम से प्रसिद्ध हुई थी।
राजा श्रेणिक भी यहीं हुए हैं। राजा बौद्ध थे। बाद में भगवान महावीर के अनुयायी बन परम भक्त बने थे । बाद में उनको केद करके उनका पुत्र कोणिक यहाँ राजा बना था।
श्रेणिक श्री वीरपरमात्मा के परम भक्त बने और भक्ति से तीर्थंकर नाम कर्म का बंध किया। वह आने वाली चौबीसी में प्रथम पद्मनाभ नामक तीर्थंकर होंगे।
भगवान महावीर ने राजगृही के नालंदा में १४ चातुर्मास किए थे। शास्त्र में यहाँ के गुणशील चैत्य का वर्णन है। जहाँ प्रभु बारम्बार पधारे थे। भगवान महावीर के ११ गणधर भी यहीं पधारे थे। मोक्षपद को प्राप्त हुए थे।
श्री जंबूस्वामी, श्री शयंभवसू., श्री मेतार्य, घना, शालिभद्र, मेघकुमार, अभयकुमार, नंदिषेण, अर्जुनमाली, कयवन्ना, पुण्याश्रावक आदि की अमर गाथायें इस भूमि के साथ जुड़ी हुई है।