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________________ ४९८) श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग - २ ६. श्री कुंडलपुर तीर्थ WAS AWAR श्री कुंडलपुर जैन मंदिरजी श्री गौतम स्वामी मूल पादुका मूलनायक श्री भगवान आदिश्वरजी श्यामवर्णी प्रतिमा श्री आदिश्वरजी, श्री शांतिनाथजी, श्री महावीर स्वामी श्री गौतम स्वामीजी की चरण पादुका धर्मशाला में आए जिनालय में है। धर्मशाला नयी बन रही है। नालंदा जिला से ३ कि.मी. दर कुंडलपुर गांव में यह तीर्थ है। गौतम स्वामी की जन्मभूमि गुब्बर गांव और वडगांव नाम पूर्व काल में कहा हुआ है। नालंदा, कुंडलपुर यह राजगृह नगर के उपनगर थे। श्री इन्द्रभूति की तरह श्री अग्निभूमि और श्री वायुभूमि गणधरों का जन्म भी यहाँ हुआ था। यह तीनों भाई थे। ई. सं. ४१० में चीनी यात्री फाहियान यात्रा करने आये तब सामान्य स्थल का उल्लेख है। कुमार गुप्त ई. स. ४२४ से ४५४ बौद्ध साधुओं के लिए विशाल मठ बनाया और बाद में नालंदा विद्यापीठ बनने से बौद्ध विद्या का बड़ा केन्द्र बन गया। सातवीं सदी में आये चीनी यात्री ह्वेनसांग ने इस विश्व विद्यालय की नोट की है और उन्होंने वहाँ अभ्यास किया था। तेरहवीं सदी तक यह विद्यालयथा बाद में बखत्यार खिलजी द्वारा उसका नाश करने का उल्लेख है। भगवान महावीर के समय में और बाद में भी यहां जैन धर्म का बहुत प्रभाव था। उस बारे में इतिहास है। जमीन में महत्वपूर्ण सामग्री होना संभावित है। भगवान महावीर को गौशाला ने यहीं देखा था। विविध तीर्थ कल्प में श्री जिनप्रभ सू. म. ने यहां का वर्णन किया है। हंशसोम मुनि ने १५६५ में यहां १६.मंदिर बताये हैं। सं. १६६४ में पं. जयविजयजीने १७ मंदिर बताये हैं। वि.सं. १७५० में पं.सौभाग्य विजयजीम. ने एक मंदिर, एक स्तूप और प्रतिमा बिना के जीर्ण अवस्था वाले दूसरे मंदिर बताये हैं। आज की स्थिति उपर बताई है। पास में धर्मशाला है। रेल्वे स्टेशन नालंदा ३ कि.मी. है। बीच में नालंदा खंडहर आता है। राजगिर से नालंदा होकर ९ कि.मी. है। पावापुरी से बिहार शरीफ होकर २१ कि.मी. है। नालंदा से तांगा रिक्शा मिलते हैं।
SR No.002431
Book TitleShwetambar Jain Tirth Darshan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendrasuri
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year2000
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size75 MB
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