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________________ तामिलनाडु विभाग मुलताचक श्री सुविधिनाथजी में १ में कीनो नहि तुम बीन ओर शुं राग । दिन दिन वान बधे गुण तेरो, ज्यं कंचन परभारत; ओरनमें है कषायकी कालिमा, सो क्युं सेवा लाग राजहंस तु मानसरोवर, और अशुचि रुचि काग; विषय भुजंगम गरुड तु कहीओ, और विषय विषनाग में २ और देव जल छिल्लर सरीखे तुं तो समुद्र अथाग; तु सुरतरुं मन वांछित पूरण, और तो सुके साग । तं पुरुषोत्तम तं हि निरंजन, नुं शंकर बड़भाग; तुं ब्रह्मातुं बुद्ध महाबल, तुंहि ज देव वीतराग । सुविधिनाथ तुम गुण पलन को, मेरो दिल है बाग मे ३ जस कहे भ्रमर रसिक होई ताको, लीजे भक्ति पराग मे ५ ९. श्री कोईम्बतुर तीर्थ मूलनाचक श्री मुनिसुव्रत स्वामी आर. अस. पुरम् मे ४ आर. अस. पुरम् जैन मंदिरजी- कोईम्बतुर (०२९
SR No.002431
Book TitleShwetambar Jain Tirth Darshan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendrasuri
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year2000
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size75 MB
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