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________________ महाराष्ट्र विभाग 100. 0 COO 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 मूलनायक श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथजी मूलतायक श्री नेमिनाथजी पंचम सुरलकोना वासीरे, नव लोकांतिक सुविलासीर; करे विनति गुणनी राशी, मल्लि जिन नाथजी व्रत लीजे रे। भवि वने शिव सुख दीजे। मल्लि॥१ तुमे करुणा रस भंडाररे गाम्या छो भवजल पार रे; ___सेवकनो करवो उद्धार, मल्लि॥ प्रभुदान संवत्सरी आपेरे, जगनां दारिद्रदुःख कापर: भव्यत्वपणे तस थापे । मल्लि॥३ सुरपति सघला मलि आवे रे, मणिरयण सोवन वसावर: प्रभु चरणे शिष नमावे। मल्लि॥४ तीर्थोदक कुंभा लावेरे, प्रभुने सिंहासन ठावे रे; सुरपत भकते नवरावे। मल्लि ॥५ वस्त्राभरणे शणगारे रे, फूलमाला हृदय पर धारे रे; दुःखड़ां ईंद्राणी उवार, मल्लि॥६ या सुरनर कोडा काडीरे, प्रभु आगे रह्या कर जोडीरे; करे भक्ति युक्ति मद मोडी। मल्लि॥७ मृगशिर सुदिनी अजुवालीरे, अकादशी गुणनी आलीरे; वर्या संयम वधु लटकाली। मल्लि ॥८ दीक्षा कल्याणक अहरे, गातां दुःख न रहे रेहरे; लहे रुपविजय जस नेह । मल्लि ॥९ कल्याण जैन मंदिरजी
SR No.002431
Book TitleShwetambar Jain Tirth Darshan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendrasuri
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year2000
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size75 MB
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