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महाराष्ट्र विभाग
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मूलनायक श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथजी
मूलतायक श्री नेमिनाथजी
पंचम सुरलकोना वासीरे, नव लोकांतिक सुविलासीर; करे विनति गुणनी राशी, मल्लि जिन नाथजी व्रत लीजे रे।
भवि वने शिव सुख दीजे। मल्लि॥१ तुमे करुणा रस भंडाररे गाम्या छो भवजल पार रे;
___सेवकनो करवो उद्धार, मल्लि॥ प्रभुदान संवत्सरी आपेरे, जगनां दारिद्रदुःख कापर:
भव्यत्वपणे तस थापे । मल्लि॥३ सुरपति सघला मलि आवे रे, मणिरयण सोवन वसावर:
प्रभु चरणे शिष नमावे। मल्लि॥४ तीर्थोदक कुंभा लावेरे, प्रभुने सिंहासन ठावे रे;
सुरपत भकते नवरावे। मल्लि ॥५ वस्त्राभरणे शणगारे रे, फूलमाला हृदय पर धारे रे;
दुःखड़ां ईंद्राणी उवार, मल्लि॥६ या सुरनर कोडा काडीरे, प्रभु आगे रह्या कर जोडीरे;
करे भक्ति युक्ति मद मोडी। मल्लि॥७ मृगशिर सुदिनी अजुवालीरे, अकादशी गुणनी आलीरे;
वर्या संयम वधु लटकाली। मल्लि ॥८ दीक्षा कल्याणक अहरे, गातां दुःख न रहे रेहरे;
लहे रुपविजय जस नेह । मल्लि ॥९
कल्याण जैन मंदिरजी