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________________ महाराष्ट्र विभाग Saator ne ભગવાન + श्री दुथुनाथ॥+ ५३. श्री सिन्नर तीर्थ मूलतायक श्री कुंथुनाथजी (उपर) मूलनायक श्री पार्श्वनाथजी नासिक से लगभग ४० कि. मी. दूर सिन्नर गांव के बीच मंदिरजी है। संवत १९५२ में गांव में एक छोटी कोठरी में एक ही मूर्ति विराजमान कर मंदिर जैसा शुरु किया। परंतु धीरे-धीरे गांव में बस्ती बढ़ने से जैनों के घर भी बड़े थे। अभी गांव में मात्र १० घर जैन के हैं। बाकी अन्यत्र चले गए हैं। संवत् २०४९ को मगसिर सुदी १० के दिन फिर से नये भगवान श्री कुंथुनाथ स्वामी विराजमान किए और दो मंजिल का मंदिर बनवाया । पू. आ. श्री विजययशोदेव सूरीश्वरजी म. ने प्रतिष्ठा करवाई थी। नासिक से पूना, शिरडी, संगमनेर, अहमदनगर यह विहार क्रम में गांव आते हैं । पास में नासिक है और डुबेरा तीर्थ है। जहां लगभग १५० वर्ष पुराना एक मंदिर है। श्री जैन श्वे. मू. संघ, सिन्नर, जि. नासिक. पिन - ४२२१०३ MP 422222231 सिल्वर जैन मंदिरजी 42190 यही શ્રી ચિંતામણી પાર્શ્વનાથ मूलताचक श्री चिंतामणि पार्श्वनाथजी कुंथु जिन नाथ, जे करे छे सनाथ; तारे भव पाथ, जे ग्रही भव्य हाथ, अहनो तजे साथ, बावले दीये बाथ; तरे सुरनर साथ, जे सुणे अक गाथ ॥ १ ॥ (६६३
SR No.002431
Book TitleShwetambar Jain Tirth Darshan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendrasuri
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year2000
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size75 MB
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