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________________ ニ) मन नाचे मारुं तन नाच, शोभ स्वामी सुपाश्वरे । तारजो मुजने जिनवरिया। वाराणसी नगरीमा जनम्या, भविजन आनंदकारी: जन्म उत्सव तारो सुरेन्द्र करता, स्वस्तिक लंछनधारी प्रभुजी स्वस्तिक लंछनधारी । मोह ममताने मार मारीने, बन्या संसारना त्यागी; धाति कर्मनो नाश करने, हुआ तसे भागी । प्रभुजी हुआ तसे बडभागीसमवसरणमां आप विराजो, चाबीग अतिशय छाजे: वाणी आपनी मधुर जे. पात्रीण गुणी साजे । प्रभुजी पाणी गाजे । मन. देरासरजी व्यु मन. मन 98-SEEC श्री वेगावर जैन तीर्थ दर्शन मांधा मूलो उपदेश दईने, तार्या बहु नरनारी; धाति कर्म पण दरकीरने साधी शिवगति न्यारी; जिणंदा साधी शिवगति न्यारी- मन. अमृत भुवन सुदर्शन सोहे. जयंत, रोहित रवि, प्यारा विजय तारक से विभुना, अवदावत छे मनोहराः खरेखर! अवदावत छे मनोहरा मन. राजकोट शहरने पावन कीधु, सेव्या भक्ति भावे अमृत सरिवर गुरुजी प्रतापे, जिनेन्द्रविजय गुण गावे उमंगे ! जिनेन्द्रविजय गुण गावे- मन 97.0 8
SR No.002431
Book TitleShwetambar Jain Tirth Darshan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendrasuri
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year2000
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size75 MB
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