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________________ ६३२) २७. श्री दिग्रस तीर्थ मूलनायक श्री चिंतामणि पार्श्वनाथजी मूलनायक श्री चिंतामणि पार्श्वनाथजी प्राचीन मंदिर में धातु के प्रतिमाजी थे। शिखर बंधी मंदिर में आरस के हैं । ७० वर्ष पुराना मंदिर है। आरस के ३ धातु के २२ प्रतिमाजी है। जैनों के १४० घर और ७५० की संख्या है । दारव्हा से २५ कि.मी. है। जि. यवतमाल, ता. दिग्रस पिन - ४४५२०३ दिग्रस जैन मंदिरजी २८. श्री गोलबाजार (शेखारपीपरी ) तीर्थ मूलनायक श्री शांतिनाथजी किल्लाबंधी मंदिर प्राचीन बांध कार्य वाला गुम्मच युक्त है। सुवालाल नेमिचंदजी ओसवाल सोनी जिनने उनके पिताश्री के श्रेयार्थ सन् १९५४ में जीर्णोद्धार कराया है। आरस के १ प्रतिमाजी है। जैनों के ५ घर है २५ की संख्या है। स्टेशन हिंगोली, जि. परभणी, ता. करमनूटी, पिन ४३१ ७०२ जयपुर, सिकंदराबाद रेल्वे, खंडवापुर के रेल्वे पर हिंगोल स्टेशन है। हिंगोली से ३५ कि.मी. है। पास के करमनूटी गांव में प्राचीन प्रतिमाजी है । श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन भाग- २ DILAY मारो मुजरो ल्योने राज, साहिब शांति सलुणा; अचिसजीना नंदन तोरे, दरिसण हेते आव्यो; समकित रीझ करोने स्वामी, भक्ति भेटणं लाव्यो । मारो - १ दुःख भंजन छे बिरुद तमारुं, अमने आशा- तुमारी; तुमे निरागी थईने छुटो, शी गति होशे अमारी ? मारो-२ कहेशे लोक न ताणी कहेवुं, अवडुं स्वामी आगे; पण बालक जो बोली न जाणे, तो किम व्हालो लागे । मारो-३ माहरे तो तुं समरथ साहिब, तो किम ओ मानुं ? चिन्तामणि जेणे गांठे बांधयुं, तेमने काम किश्वानुं ? मारो४ अध्यात्म रवि उग्यो मुज घट, मोहतिमिर हर्तुं जागते; विमलविजय वाचकनो सेवक, राम कहे शुभ भगते । मारो-५
SR No.002431
Book TitleShwetambar Jain Tirth Darshan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendrasuri
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year2000
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size75 MB
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