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मध्य प्रदेश
मूलनायक श्री उवसग्गहरं पार्श्वनाथजी दुर्ग शहर के पास यह तीर्थ है। नगपुरा गांव है। २५-३० झोंपड़े वाला यह गांव है। गंडक नदी के उत्तर पहाड़ों में उगना गांव है वहां १७-१०-१९८१ के दिन उगना के प्रमुख भुवनसिंह कुआं खोदते हैं वहां ५५-६० फुट खुदाई हुई तब कुएं की खाड दूधिया पानी से भर गई। देखा तो कोई भारी पत्थर है ऐसा लगा। रस्सी बांधकर पत्थर बाहर लाए। वह मूर्ति थी और बहुत से सांपों से लिपटी हुई थी। सर्प देखकर मजदूर भाग गए। भुवनसिंह ने व वनवासियों आदि ने प्रणाम किया। सभी भगवान मानकर स्वयं के तरीके से पूजने लगे।
एक बार कारोबार के संबंध में हीरा मेघजी संघवी को उन्होंने बात की वो भी साथियों के साथ वहां आये और देखकर बोले अरे ये तो हमारे पार्श्वनाथ भगवान है। प्रतिमा कानपुर ले जाने के लिए कहा परन्तु कोई माने नहीं जिससे एक कमरा बनाकर पू. पं. श्री भद्रंकरविजयजी म. के पास से मुहुर्त निकलवाकर वहां विराजमान की व पूजा शुरु करवाई उसी रात्रि को १०-११ व्यक्तियों को स्वप्न आया कि यह मूर्ति नगपुरा में रावतमल मणि को दो वहां तीर्थ बनेगा। सुबह इकट्ठे हुए। मूर्ति के उपर बहुत सारे सर्प लिपटे हुए देखकर रावतमल मणि की खोज की उनको लाने पर
एक विशाल नाग आया प्रतिमाजी को प्रदक्षिणा देकर माणिकजी के पास बैठा मणिजीने नमीउणस्त्रोत बोलकर प्रभुजी की पूजा की दो सर्प के अलावा सभी सर्प चले गये।
मूलनायक श्री पार्श्वनाथजी
पू. आ. श्री कैलाशसागरजी म. पाली थे। उनके पास से मुहर्त लिया और भुवनसिंह का बहुमान करने के साथ उगना में विराजमान करने के लिए ३ प्रतिमाजी देकर ता. २६-४-१९८५ को वह प्रतिमाजी नागपुर लाये परंतु हद के पास मेटाडोर रुक गई ता. २८ को उन प्रभु के नामस्मरण से तुरंत चल गई यह प्रतिमाजी उवसग्गहरं पार्श्वनाथजी के नाम से प्रसिद्ध हुई।
भव्य मंदिर बना अनेक पूज्यों की प्रेरणा, सहयोग व मार्गदर्शन से तीर्थ बन गया जिसकी प्रतिष्ठा पू. आ. श्री विजय राजयश सूरीश्वरजी म. की निश्रा में ता. ५-२-९५ के दिन हुई। भव्य विशाल जिनमंदिर बना है। धर्मशाला, भोजनशाला आदि की व्यवस्था है।
श्री उवसग्गहरं पाश्र्व तीर्थ पारसनगर मु. पो. नगपुरा जि. दुर्ग ४९१००१ (म. प्र. ) फोन ०७८८-८९४८ (मेनेजिंग ट्रस्टी ३२३८- रायपुर)
३०. श्री राजनांदगांव तीर्थ
राजनांदगांव जैन मंदिरजी
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