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________________ पंजाब विभाग (५६५ मूलनायक श्री पार्श्वनाथजी इस मंदिर की प्रतिष्ठा श्रीमद् विजयानंदसूरि (आत्मारामजी) म. के करकमलों द्वारा वि. सं. १९५१ मगशिर सुदी १३ ता. ७-२-१८९५ के दिन हुई थी। यह मंदिर सुंदर और शिखरबंदी है। इस मंदिर का जीर्णोद्धार जरुरी है। सरदार रणजीतसिंह जिनकी लाहोर में समाधि थी। उसकी मीनाकारी और कारीगरी थी ऐसी ही कारीगरी और मीनाकारी इस मंदिर में ईब्राहीम मुसलमान ने बनवाई है। सोनी जगह बना मंगकी टाल और मस्लकीरकी दाल डाल कर बनाने में आई है। इसके कारण इसमें ऐसी मजबूती है कि १९६२ में जब टाईम बम मंदिर को उडाने के लिए किसी ने रखा था। इस विस्फोट में मंदिर को कोई नुकसान नहीं हुआ। इस मंदिर में जो कांच लगाने में आए हैं। वह सीधे नहीं परन्तु गोलाई लिए हुए है। १०० वर्ष पहले यहां कोई श्वे. मू. जैन नहीं थे। परन्तु बाद में गुरु आत्मारामजी म. के उपदेश से यहां जो स्थानकवासी थे उन्होंने श्वेताम्बर धर्म स्वीकारा पहले श्वेताम्बर जैन घशीटामलजी बने उनके पुत्र पंडित अमीचंद को श्वे. धर्म की पूरी शिक्षा-दिक्षा दी। और उसके बाद अनेक जैनों ने श्वे. मू. धर्म स्वीकार कर लिया। ____यहां अभी श्वेताम्बर जैन के ८० घर है वि. सं. १९५१ मगशिर सुदी ३ को मंदिर की प्रतिष्ठा हुई है। १०० वर्ष पूरे हए उसका शताब्दि महोत्सव बहुत धुमधाम से मनाया था। दूसरे मंदिर में मूलनायक श्री विमलनाथजी है। यह मंदिर बहुत प्राचीन है यह मंदिर श्री पूजका था परन्तु १९६५ में इस मंदिर का जीर्णोद्धार प. पू. आ. श्री समुद्रसूरीश्वरजी म. के द्वारा हुआ। मूर्ति बहुत प्राचीन है। भोजन व ठहरने की व्यवस्था सभा करके देती है। पार्श्वनाथ भगवान के मंदिर के पास श्री महावीरस्वामी का मंदिर है। इस मंदिर का जीर्णोद्धार सेठ आनंदजी कल्याणजी (अहमदाबाद) ने रु. ५०००= खर्च करके करवाया था। अमृतसर से पट्टी ४५ कि.मी. दर है। रोड है. रेल्वे नहीं है। ओमनवो. ओमनवो. ओमानवो. ओ मनवो लुब्ध थयो जिन ध्यानमां, लीन थयो गुणगानमां..... क्रोधमान माया लोभ चोरो मारवा। जिनजी जुहार्या अकतानमा मोहराय रिपुने दूरे हठाववा, रातदिन आएं तारा स्थानमां। आठ फणालापमद नागर्नु विष जे, उतरी गयुं तारा मानमां। कामतरुने जडमूलथी उखेडवा, आव्यो शासन मेदानमा। थयो हरख गुरु कर्पूर पसायथी, जिन गुण अमृत पानमां.... ओ मानवो. ओमानवो. ओ मानवो. वृथा गई प्रभु जिंदगी मारी विषयकषायना कादवमां प्रभु, रमियो हुं आपने विसारी। वृथा. मोह मदिराना धेनमा पडियो, भूल्यो भान प्रभु भारी। वृथा. रमा रामाना रागमां अतिशय, अंध बन्यो हुँ विकारी। वृथा. आ लोकनी चिंतामां पडीने, भक्ति करी ना तुमारी। वृथा. दोषोनो दरियो हं पापोथी भरियो, शी गति थाशे हमारी। वृथा. गुरु कर्पूरसूरि अमृत भाखे, ल्यो भवदवथी उगारी। वृथा. पट्टी जैन मंदिरजी
SR No.002431
Book TitleShwetambar Jain Tirth Darshan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendrasuri
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year2000
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size75 MB
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