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________________ अनुस्सतिकम्मट्ठाननिद्देसो १५. तत्थायं पाळिवण्णनापुब्बङ्गमो भावनानिद्देसो इममेव कायं ति। इमं चतुमहाभूतिकं पूतिकायं। उद्धं पादतला ति। पादतला उपरि। अधो केसमत्थका ति केसंग्गतो हेट्ठा । तचपरियन्तं ति। तिरियं तचपरिछिन्नं । पूरं नानप्पकारस्स असुचिनो पच्चवेक्खती ति। नानप्पकारकेसादिअसुचिभरितो अयं कायो ति पस्सति । कथं? अस्थि इमस्मि काये केसा..पे०...मुत्तं ति। तत्थ अत्थी ति। संविजन्ति । इमस्मि ति। य्वायं उद्धं पादतला अधो केसमत्थका तचपरियन्तो पूरो नानप्पकारस्स असुचिनो ति वुच्चति, तस्मि। काये ति। सरीरे। सरीरं हि असुचिसञ्चयतो कुच्छितानं केसादीनं चेव चक्रोगादीनं च रोगसतानं आयभूततो कायो ति वुच्चति । केसा लोमा ति। एते केसादयो द्वत्तिंसाकारा । तत्थ अस्थि इमस्मि काये केसा', 'अस्थि इमस्मि काये लोमा' ति एवं सम्बन्धो वेदितब्बो। इमस्मि हि पादतला पट्ठाय उपरि, केसमत्थका पट्ठाय हेट्ठा, तचतो पट्ठाय परितो ति एत्तके व्याममत्ते कळेवरे, सब्बाकारेन पि विचिनन्तो न कोचि किञ्चि मुत्तं वा मणिं वा वेळुरियं वा अगरु वा कुङ्कम वा कप्पूरं वा वासचुण्णादिं वा अणुमत्तं पि सुचिभावं पस्सति, अथ खो परमदुग्गन्धजेगुच्छं असिरिकदस्सनं नानप्पकारं केसलोमादिभेदं असुचिं येव पस्सति । तेन वुत्तं-'अत्थि इमस्मि काये केसा लोमा...पे०....मुत्तं' ति। अयमेत्थ पदसम्बन्धतो वण्णना॥ १६. इमे पन कम्मट्ठानं भावेतुकामेन आदिकम्मिकेन कुलपुत्तेन वुत्तप्पकारं कल्याण इस प्रकार मस्तिष्क को अस्थि-मज्जा के अन्तर्गत मानते हुए, प्रतिकूल मनस्कार के रूप में उपदिष्ट बत्तीस आकारों (प्रकारों) वाला कर्मस्थान है, वही यहाँ कायगतासति (कायगता स्मृति) के रूप में अभिप्रेत है। १५. यहाँ पहले पालि की व्याख्या रखते हुए, भावना का वर्णन इस प्रकार है इममेव कायं-चार महाभूतों से निर्मित इस पूतिकाय को। उद्धं पादतला-तलवे से ऊपर। अधो केसमत्थका-केशों के नीचे। तचपरियन्तं-चारों ओर से त्वचा से परिवेष्टित । पूरं नानप्पकारस्स असुचिनो पच्चवेक्खति-इस काय को नाना प्रकार की केश आदि गन्दगियों से भरा हुआ देखता है। कैसे? इसी शरीर में केश ...पूर्ववत्... मूत्र है। इसमें, अस्थि-वर्तमान है। इमस्मि-यह जो तलवे से लेकर केश तक त्वचा के भीतर नाना प्रकार की गन्दगियों से भरा हुआ कहा जाता है, उसमें। काये-शरीर में। शरीर गन्दगी का भण्डार होने से, कुत्सित केश आदि का तथा नेत्र-रोग आदि सैकड़ों रोगों का उत्पत्ति (आय) स्थान होने से 'काय' कहा जाता है। केसा लोमा-ये केश आदि बत्तीस प्रकार। यहाँ, 'इसी शरीर में केश हैं', 'इसी शरीर में रोम हैं'-यों सम्बन्ध समझ लेना चाहिये। क्योंकि तलवे से ऊपर, केशों से नीचे, चारों ओर से त्वचा वाले इस ऐसे एक व्याम (चार हाथ लम्बे) मात्र शरीर पर सब प्रकार से विचार करते हुए कोई (व्यक्ति) मोती, मणि, वैदूर्य, अगरु, कुङ्कम, कपूर या सुगन्धित चूर्ण आदि (प्रसाधन की वस्तुओं) में रञ्चमात्र भी शुचिता (पवित्रता, सौन्दर्य) नहीं देखता है, अपितु वह तो परम दुर्गन्धित, जुगुप्साजनक, अशुभ दर्शन,
SR No.002429
Book TitleVisuddhimaggo Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDwarikadas Shastri, Tapasya Upadhyay
PublisherBauddh Bharti
Publication Year2002
Total Pages386
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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