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________________ विसुद्धिमग्गो ते पि नातिगता मच्, मादिसेसु कथा व का ति॥ एवं पच्चेकबुद्धतो अनुस्सरितब्बं । कथं सम्मासम्बुद्धतो? यो पि सो भगवा असीतिअनुब्यञ्जनपटिमण्डितद्वत्तिंसमहापुरिसलक्खणविचित्ररूपकायो सब्बाकारपरिसुद्धसीलक्खन्धादिगुणरतनसमिद्धधम्मकोयो यसमहत्त-पुञ्जमहत्तथाममहत्त-इद्धिमहत्त-पञ्जामहत्तानं पारं गतो असमो असमसमो अप्पटिपुग्गलो अरहं सम्मासम्बुद्धो, सो पि सलिलवुट्ठिनिपातेन महाअग्गिफ्खन्धो विय मरणवुट्ठिनिपातेन ठानसो वूपसन्तो। एवं महानुभावस्स यं नामेतं महेसिनो। न भयेन न लज्जाय मरणं वसमागतं॥ निल्लजं वीतसारजं सब्बसत्ताभिमद्दनं। तयिदं मादिसं सत्तं कथं नाभिभविस्सती ति॥ . एवं सम्मासम्बुद्धतो अनुस्सरितब्बं। तस्सेवं यसमहत्ततादिसम्पन्नेहि परेहि सद्धिं मरणसामञताय अत्तानं उपसंहरित्वा 'तेसं विय सत्तविसेसानं मय्हं पि मरणं भविस्सती' ति अनुस्सरतो उपचारप्पत्तं कम्मट्ठानं होती ति। एवं उपसंहरणतो मरणं अनुस्सरितब्बं । ८. कायबहुसाधारणतो ति। अयं कायो बहुसाधारणो। असीतिया ताव किमिकुलानं साधारणो। तत्थ छविनिस्सिता पाणा छविं खादन्ति, चम्मनिस्सिता चम्मं खादन्ति, मंसनिस्सिता कैसे सम्यक्सम्बुद्ध से (तुलना करनी चाहिये)? वे भगवान् अस्सी अनुव्यञ्जनों से प्रतिमण्डित और बत्तीस महापुरुष-लक्षणों से युक्त, विचित्र रूपकाय (भौतिक शरीर) वाले; सब प्रकार से परिशुद्ध शीलस्कन्ध आदि गुण-रत्नों से समृद्ध धर्मकाय वाले; यशोमहत्ता, पुण्यमहत्ता, ऋद्धि की महत्ता, प्रज्ञा की महत्ता की चरम सीमा, अनुपम, अनुपमों के समान, अद्वितीय, अर्हत्, सम्यक्सम्बुद्ध थे, वे भी जल-वृष्टि होने से (बुझी) अग्नि की विशाल राशि के समान मरणरूपी वृष्टि से तुरन्त शान्त हो गये। ऐसे महान् गुणों वाले महर्षि को भी वश में करते हुए निर्लज, निडर, सभी सत्त्वों का मर्दन करने वाली जिस मृत्यु को न भय लगा, न लज्जा लगी, वह मुझ जैसे सत्त्व को क्यों नहीं अभिभूत करेगी!॥ यों सम्यक्सम्बुद्ध से (तुलना करते हुए) अनुस्मरण करना चाहिये। (७) जब वह महान् यश आदि से सम्पन्न अन्यों के साथ मरणशीलता के विषय में अपनी "तुलना करता है, तब 'उन विशेष सत्त्वों के समान मेरा भी मरण होगा'-ऐसा अनुस्मरण करते हुए, (उसका) कर्मस्थान उपचार-प्राप्त होता है (अर्थात् यों भावना करने वाला योगी उपचारध्यान प्राप्त कर लेता है)। यों तुलना करते हुए अनुस्मरण करना चाहिये। (३) . ८. कायबहुसाधारणतो-यह काय बहुतों के लिये साधारण है (बहुत से जीव इसका उपभोग करते हैं)। अस्सी प्रकार के क्रिमियों के लिये साधारण है। बाहरी त्वचा पर रहने वाले
SR No.002429
Book TitleVisuddhimaggo Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDwarikadas Shastri, Tapasya Upadhyay
PublisherBauddh Bharti
Publication Year2002
Total Pages386
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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