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________________ ५६ विसुद्धिमग्गो महायसा राजवरां महासम्मतआदयो। ते पि मच्चुवसं पत्ता मादिसेसु कथा व का ति॥ एवं ताव यसमहत्ततो अनुस्सरितब्बं । कथं पुञ्जमहत्ततो? जोतिको जटिलो' उग्गो मेण्डको' अथ पुण्णको' । एते चचे च ये लोके महापुञा ति विस्सुता। सब्बे मरणमापन्ना मादिसेसु कथा व का ति ॥ एवं पुञ्जमहत्ततो अनुस्सरितब्बं । कथं थाममहत्ततो? वासुदेवोरे बलदेवो भीमसेनो युधिट्ठिलो। चाणूरो यो महामल्लो अन्तकस्स वसं गता ।। एवं थामबलूपेता इति, लोकम्हि विस्सुता। एते पि मरणं याता मादिसेसु कथा व का ति ॥ एवं थाममहत्ततो अनुस्सरितब्बं । कथं इद्धिमहत्ततो? पादखुट्टकमत्तेन वेजयन्तमकम्पयि। कैसे? यह मरण तो महायशस्वियों, बहुत बड़े परिवार वालों, धन-वाहन से भरे-पूरे लोगों, महासम्मत, मान्धाता, महासुदर्शन, दृढ़नेमि, निमि आदि पर भी निःसङ्कोच गिर पड़ा, डरा नहीं; तो क्या मुझ पर नहीं गिरेगा! "महायशस्वी महासम्मत आदि नृपश्रेष्ठ भी मृत्यु के वश में पड़ गये, फिर मुझ जैसे की तो बात ही क्या है!॥" यों महायशस्वियों के साथ (तुलना करते हुए) अनुस्मरण करना चाहिये। (१) महापुण्यवानों के साथ कैसे तुलना करनी चाहिये? "जोतिक, जटिल, उग्र, मेण्डक, पुण्यक (द्र०-इसी ग्रन्थ का बारहवाँ परिच्छेद)-ये सब एवं अन्य भी जो लोक में महापुण्यवानों के रूप में प्रसिद्ध हैं, वे सभी मर गये। फिर मुझ जैसे का तो कहना ही क्या है!॥ यों पुण्यात्माओं के साथ (तुलना करते हुए) अनुस्मरण करना चाहिये। (२) बलवानों के साथ कैसे तुलना करनी चाहिये? "वासुदेव (वासुदेव आदि की कथाएँ जातकट्ठकथाओं में देखें) बलदेव, भीमसेन, युधिष्ठिर और चाणूर जो महान योद्धा था-(ये सभी) मृत्यु के वश में पड़ गये॥ "ऐसे लोकप्रसिद्ध बलवान् भी जब मर गये तब मुझ जैसे का तो कहना क्या है!"॥ यों बलवानों के साथ (तुलना करते हुए) अनुस्मरण करना चाहिये। (३) १. एतेसं इद्धियो उपरि द्वादसम्हि परिच्छेदे सयमेव वण्णयिस्सति आचरियो। २. वासुदेवादीनं कथा जातकठ्ठकथायं दट्ठब्बा।
SR No.002429
Book TitleVisuddhimaggo Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDwarikadas Shastri, Tapasya Upadhyay
PublisherBauddh Bharti
Publication Year2002
Total Pages386
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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