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________________ ३२८ विसुद्धिमग्गो नीहारित्वा वपन्ति । सस्पेंस पन गोखायितकमत्तेसु जातेसु गद्रभरवं रवन्तो एकबिन्दुं पि न वस्सति । तदा पच्छिन्नं पच्छिन्नमेव वस्सं होति । इदं सन्धाय हि भगवता - " होति खो सो, भिक्खवे, समयो यं बहूनि वस्सानि बहूनि वस्ससतानि बहूनि वस्ससतानि बहूनि वस्सहस्सानि बहूनि वस्ससतसहस्सानि देवो न वस्सती" (अं० ३ / २३० ) ति वृत्तं । वस्सूपजीविनो सत्ता कालं कत्वा ब्रह्मलोके निब्बत्तन्ति, पुप्फफलूपजीविनियो च देवता । एवं दीघे अद्धाने वीतिवत्ते तत्थ तत्थ उदकं परिक्खयं गच्छति । अथानुपुब्बेन मच्छकच्छपा पि कालं कत्वा ब्रह्मलोके निब्बत्तन्ति, नेरयिकसत्ता पि । तत्थ नेरयिका सत्तमसुरियपातु भावे विनस्सन्ती ति एके । २४. झानं विना नत्थि ब्रह्मलोके निब्बत्ति, एतेसं च केचि दुब्भिक्खपीळिता, केचि अभब्बा झानाधिगमाय, ते कथं तत्थ निब्बत्तन्ती ति ? देवलोके पाटिलद्धज्झानवसेन। तदा 'वस्तसतसहस्सस्सच्चयेन कप्पुट्ठानं भविस्सती " ति लोकब्यूहा' नाम कामावचरदेवा मुत्तसिरा विकिणकेसा रुदम्मुखा अस्सूनि हत्थेहि पुञ्छमाना रत्तवत्थनिवत्था अतिविय विरूपवेसधारिनो हुत्वा मनुस्सपथे विचरन्ता एवं आरोचेन्ति - " मारिसा, इतो वस्ससतसहस्सस्स अच्चयेन कप्पवुट्ठानं भविस्सति, अयं लोको विनस्सिस्सति, महासमुद्दो पि उस्सुस्सिस्सति, 44 कर पहले जब घनघोर वर्षा करते हैं, तब मनुष्य प्रसन्न होकर खेतों बीज ले बो देते हैं । किन्तु जब फसल केवल इतनी उगी होती है कि उसे गायें चर सकें तो, गधों के समान चीखते रहने पर भी ३, एक बूँद भी पानी नहीं बरसता । इसी के विषय में भगवान् ने कहा है- "भिक्षुओ, ऐसा भी समय आता है जब अनेक वर्ष, अनेक सौ वर्ष, अनेक हजार वर्ष भी दैव (मेघ) नहीं बरसता है" (अं० नि० २/२३० ) । वर्षा पर जीवन यापन करने वाले सत्त्व एवं पुष्प फल पर जीवित रहने वाले देवता मरकर ब्रह्मलोक में उत्पन्न होते हैं। यों बहुत समय बीतने पर जहाँ तहाँ का (इकट्ठा) जल सूख जाता है। तब क्रमशः मछली, कछुए भी मरकर ब्रह्मलोक में उत्पन्न होते हैं, नारकीय सत्त्व भी। उनमें से कुछ नारकीय (प्राणी) सातवें सूर्य के उदित होने पर विनष्ट हो जाते हैं। २४. (यहाँ यह शङ्का की जा सकती है कि) ध्यान के बिना ब्रह्मलोक में उत्पत्ति नहीं होती, एवं इनमें से कुछ दुर्भिक्ष से पीड़ित होते हैं, कुछ ध्यान की प्राप्ति के अयोग्य होते हैं। वे वहाँ कैसे उत्पन्न होते हैं ? देवलोक में प्राप्त ध्यान के बल से । (जब प्रलय समीप होता है) उस समय "लाख वर्ष बीतने पर कल्प का नाश होगा" - यह जानकर लोकव्यूह' नामक कामावचर देवता नंगे सिर, केश बिखरे हुए, रुआँसा मुख बनाये, आँसुओं को हाथ से पोंछते, लाल वस्त्र पहने, अत्यधिक विरूप वेश धारण किये, मनुष्यों के रास्ते में घूमते हुए यों कहते हैं- "मा', अब से लाख वर्ष बीतने पर कल्प का नाश होगा। यह लोक नष्ट होगा, महासमुद्र भी सूख जायगा २. मारिसा ति । देवानं पियसमुदाचारो । १. लोकं ब्यूहेन्ति सपिण्डेन्ती ति लोकव्यूहा । ३. अनावृष्टि के समय खेतों में 'गधों का लोटना' एक मुहावरा है। अथवा, 'गद्रभरवं रवन्तो' का सम्बन्ध 'महामेघ' से जोड़कर यह अर्थ भी लगाया जा सकता है—' गर्दभ - स्वर के समान व्यर्थ गर्जन - तर्जन करते हुए । ४. वे लोक का व्यूहन करते हैं, अर्थात् भयभीत, त्रस्त मनुष्य उनके पास एकत्र होते हैं, अतः वे 'लोकव्यूह' ५. देवताओं के बीच प्रयुक्त एक प्रिय सम्बोधन । कहलाते हैं।
SR No.002429
Book TitleVisuddhimaggo Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDwarikadas Shastri, Tapasya Upadhyay
PublisherBauddh Bharti
Publication Year2002
Total Pages386
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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