SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 351
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ विसुद्धिमग्गो चतुत्थज्झानतो वुट्ठाय सब्बुपच्छिमा निसज्जा आवज्जितब्बा । ततो आसनपञ्ञापनं, सेनासनप्पवेसनं, पत्तचीवरपटिसामनं, भोजनकालो, गामतो आगमनकालो, गामे पिण्डाय चरितकालो, गामं पिण्डाय पट्टिकालो, विहारतो निक्खमनकालो, चेतियङ्गण-बोधियङ्गणवन्दनकालो, पत्तधोवनकालो, पत्तपटिग्गहणकालो, पत्तपटिग्गहणतो याव मुखधोवना कतकिच्चं पच्चूसकाले कतकिच्वं, पच्छिमयामे कतकिच्चे, पठमयामे कतकिच्वं ति एवं पटिलोमक्कमेन सकलं रत्तिन्दिवं कतकिच्वं आवज्जितब्बं । एत्तकं पन पकतिचित्तस्सापि पाकटं होति । परिकम्मसमाधिचित्तस्स पन अतिपाकटमेव । ३२४ १७. सचे पनेत्थ किञ्चि न पाकटं होति, पुन पादकज्झानं समापज्जित्वा वुट्ठाय आवज्जितब्बं । एत्तकेन दीपे जलिते विय पाकटं होति । एवं पटिलोमक्कमेनेव दुतियदिवसे पि, ततिय-चतुत्थ-पञ्चमदिवसे पि, दसाहे पि, अड्ढमासे पि, मासे पि, याव संवच्छरा पि कतकिच्च आवज्जितब्बं । एतेनेव उपायेन दस्स वस्सानि, वीसति वस्सानी ति, याव इमस्मि भवे अत्तनो पटिसन्धि, ताव आवज्जन्तेन पुरिमभवे चुतिक्खणे पवत्तितनामरूपं आवज्जितब्बं । होति पण्डितो भिक्खु पठमवारेनेव पटिसन्धिं उग्घाटेत्वा चुतिक्खणे नामरूपं आरम्मणं कातुं । १८. यस्मा पन पुरिमभवे नामरूपं असेसं निरुद्धं अञ्जं उप्पन्नं, तस्मा तं ठानं आहुन्दरिकं' अन्धतममिव होति दुद्दसं दुप्पञ्जेन । तेनापि "न सक्कोमहं पटिसन्धिं उग्घाटेत्वा पिण्डपात से अवकाश पाकर, एकान्त में जाकर क्रम से चार ध्यानों में समापन्न होना चाहिये। तब अभिज्ञा के आधारभूत चतुर्थ ध्यान से उठकर, बैठने के काय का, जो अभी अभी किया गया है, आवर्जन करना चाहिये। तत्पश्चात् आसन बिछाना, शयनासन में प्रवेश, पात्र - चीवर उठाकर रखना, भोजन, ग्राम से लौटने, ग्राम में भिक्षार्थ चारिका, ग्राम में भिक्षार्थ प्रवेश, विहार से निकलने, चैत्य के आँगन एवं बोधि के आँगन की वन्दना, पात्र धोने एवं पात्र उठाने का समय, पात्र उठाने से लेकर मुखप्रक्षालन, उषःकाल में किया गया कार्य, मध्याह्न में किया गया कार्य, दिन के पूर्व भाग में किया गया कार्य-यों प्रतिलोम-क्रम से रात-दिन के सभी कार्यों का आवर्जन करना चाहिये । वैसे तो यह (सब कार्य स्मरण करने पर) प्रकृतिचित्त के लिये भी प्रकट होता है, किन्तु समाधि में परिकर्म करने वाले चित्त के लिये अत्यधिक प्रकट होता है। १७. किन्तु यदि इनमें से कोई स्पष्ट न हो, तो पुनः आधारभूत ध्यान में समापन होकर उठने के बाद आवर्जन करना चाहिये । इतना करने से प्रज्वलित दीपक के समान प्रकट होता है। यों, प्रतिलोम क्रम से दूसरे दिन, तीसरे, चौथे, पाँचवे, दस दिन, एक पक्ष, एक मास, एक वर्ष के भीतर-भीतर भी किये गये कार्यों का आवर्जन करना चाहिये । इसी उपाय से दस वर्ष, बीस वर्ष, एवं इस भव में अपनी प्रतिसन्धि से लेकर (वर्तमान समय तक) आवर्जन करने वाले को चाहिये कि पूर्वभव में च्युति के क्षण में जो नामरूप प्रवर्तित १. आहुन्दरिकं ति । अही च उन्दूरा च अञ्ञम पस्सितुं न सक्कोन्ति, तादिसं । २. अन्धतमं ति । गाळ्हान्धकारतिमिसा ।
SR No.002429
Book TitleVisuddhimaggo Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDwarikadas Shastri, Tapasya Upadhyay
PublisherBauddh Bharti
Publication Year2002
Total Pages386
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy