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विसुद्धिमग्गो समोहं। मोहस्स पंन सब्बाकुसलेसु सम्भवतो द्वादसविधं पि अकुसलचित्तं समोहं चित्तं ति वेदितब्बं । अवसेसं वीतमोहं।
थीनमिद्धानुगतं प्रन सङ्कितं, उद्धच्चानुगतं विक्खित्तं । रूपावचरारूपावचरं महग्गतं, अवसेसं अमहग्गतं । सब्बं पि तेभूमकं सउत्तरं, लोकुत्तरं अनुत्तरं। उपचारप्पतं अप्पनाप्पत्तं च समाहितं, उभयमप्पत्तं असमाहितं। तदङ्गविक्खम्भन-समुच्छेद-पटिप्पस्सद्धि-निस्सरणविमुत्तिप्पत्तं विमुत्तं। पञ्चविधं पि एतं विमुत्तिमप्पतं अविमुत्तं ति वेदितब्बं । इति चेतोपरियआणलाभी भिक्खु सब्बप्पकारं पि इदं सरागं वा चित्तं...पे०...अविमुत्तं वा चित्तं अविमत्तं चित्तं ति पजानाती ति॥
चेतोपरियाणकथा निट्ठिता॥ ३. पुब्बेनिवासानुस्सतित्राणकथा ९. पुब्बेनिवासानुस्सतिजाणकथाय पुब्बेनिवासानुस्सतित्राणाया (दी० नि० १/८९) ति। पुब्बेनिवासानुस्सतिम्हि यं जाणं, तद्वत्थाय। पुब्बेनिवासो ति। पुब्बे अतीतजातीसु निवुत्थक्खन्धा। निवुत्था ति। अज्झावुत्था, अनुभूता, अत्तनो सन्ताने उप्पज्जित्वा निरुद्धा। निवुत्थधम्मा वा। निवुत्था ति। गोचरनिवासेन निवुत्था, अत्तनो विज्ञाणेन विज्ञाता परिच्छिन्ना। परविाण-विज्ञाता पि वा छिन्नवटुमकानुस्सरणादीसु, ते बुद्धानं येव लब्भन्ति ।
८. समोहं वीतमोहं-यहाँ 'प्रातिपौगलिक नय' के अनुसार (अर्थात् विशेष रूप से तो) विचिकित्साहगत एवं औद्धत्यसहगत (चित्त) ही समोह हैं; किन्तु क्योंकि सभी अकुशलों में मोह होता है, अत: बारह प्रकार के अकुशल चित्त को 'समोह चित्त' समझना चाहिये। अवशेष को वीतमोह।
स्त्यान-मृद्ध से युक्त चित्त संक्षिप्त (सङ्कचित) है, औद्धत्य से युक्त विक्षिप्त। रूपावचर एवं अरूपावचर महद्गत, शेष अमहद्गत। सभी त्रैभूमिक सोत्तर, एवं लोकोत्तर अनुत्तर हैं। उपचारप्राप्त एवं अर्पणा-प्राप्त समाहित है, दोनों को अप्राप्त असमाहित। तदङ्ग, विष्कम्भन, समुच्छेद, प्रतिप्रश्रब्धि, निःसरण नामक पाँच प्रकार की विमुक्ति को प्राप्त करने वाला विमुक्त है। इन पाँचों प्रकार की विमुक्तियाँ प्राप्त न करने वाले को अविमुक्त समझना चाहिये। यों, चेत:पर्याय ज्ञान का लाभी भिक्षु सभी प्रकार के इस सराग...पूर्ववत्....या अविमुक्त चित्त को अविमुक्त चित्त के रूप में जानता है॥
चेत:पर्यायज्ञान का वर्णन सम्पन्न ॥ पूर्वनिवासानुस्मृति ज्ञान ९. पूर्वनिवासानुस्मृति ज्ञान के वर्णन में, पुब्बेनिवासानुस्सतित्राणाय' (दी० नि० १/ ८९)-पूर्वनिवास की स्मृतिविषयक जो ज्ञान है, उसके लिये। पूर्वनिवास-पूर्व में अतीत जन्मों में निवास किये गये (जिसे गये) स्कन्ध। निवसित (निवास किये गये, 'निवुत्था') का अर्थ है अधिवासित, अनुभूत, अपनी सन्तान में उत्पन्न होकर निरुद्ध। अथवा, निवास किये गये धर्म। १. पालि यह है : "पुब्बेनिवासानुस्सतित्राणाय चित्तं अभिनीहरति अभिनिन्नामेति। सो अनेकविहितं
पुब्बेनिवासं अनुस्सरति, सेय्यथीदं-एकम्पि जाति...पे०..इति साकारं सउद्देसं अनेकविहितं पुब्बेनिवासं अनुस्सरति।"