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________________ इद्धिविधनिद्देसो २७१ अनङ्गणसुत्त-वत्थसुत्तानुसारेन (म० नि० १/३३, ४९) वेदितब्बं। वसिप्पत्तिया मुदुभूते। इद्धिपादभावूपगमेन कम्मनिये। भावनापारिपूरिया पणीतभावूपगमेन ठिते आनेञ्जप्पत्ते। यथा आनेञ्जप्पत्तं होति, एवं ठिते ति अत्थो। एवं पि अट्ठङ्गसमन्नागतं चित्तं अभिनीहारक्खमं होति अभिज्ञासच्छिकरणीयानं धम्मानं अभिज्ञासच्छिकिरियाय पादकं पदट्ठानभूतं ति। दसइद्धिकथा ८. इद्धिविधाय चित्तं अभिनीहरति अभिनिन्नामेती ति। एत्थ इज्झनटेन इद्धि। निप्फत्तिअत्थेन पटिलाभटेन चा ति वुत्तं होति। यं हि निष्फज्जति पटिलब्भति च, तं इज्झती ति वुच्चति । यथाह-"कामं कामयमानस्स तस्स चेतं समिज्झती" (सु० नि० १/३८८) ति। तथा "नेक्खम्म इज्झती ति इद्धि, पटिहरती ति पाटिहारियं। अरहत्तमग्गो इज्झती ति इद्धि, पटिहरती ति पाटिहारियं" (खु० ५/४९४) ति।। ९. अपरो नयो-इज्झनटेन इद्धि। उपायसम्पदायेतं अधिवचनं। उपायसम्पदा हि इज्झति अधिप्पेतफलप्पसवनतो। यथाह-"अयं खो चित्तो गहपति सीलवा कल्याणधम्मो, सचे पणिदहिस्सति-'अनागतमद्धानं राजा अस्सं चक्कवती' ति, तस्स खो अयं इन्झिस्सति सीलवतो चेतोपणिधि विसुद्धत्तां" (सं० नि० ३/१४९९) ति। . . १०. अपरो नयो-एताय सत्ता इज्झन्ती ति इद्धि। इज्झन्ती ति इद्धा वुद्धा उक्कंसगता से अनङ्गणे। अभिध्या आदि चित्त के उपक्लेशों के चले जाने से विगतूपक्किलेसे। इन दोनों को ही अनङ्गणसुत्त एवं वत्थसुत्त के अनुसार (म० नि० १/३३, ४९) जानना चाहिये। वशीभूत होने से मुदुभूते। ऋद्धिपाद की अवस्था प्राप्त करने से कम्मनिये। भावना की पराकाष्ठा को प्राप्त होने से आनेञ्जप्पत्ते। अर्थात् आनेञ्ज प्राप्त होने से यों स्थिर होने पर। इस प्रकार (इस नय से) भी आठ अङ्गों से युक्त चित्त को अभिज्ञा द्वारा साक्षात्कार कराये जाने योग्य धर्मों के साक्षात्कार की .ओर मोड़ा जा सकता है। (क्योंकि यह उन धर्मों का) आधार आसन्न कारण है। दस ऋद्धियाँ ८. इद्धिविधाय चित्तं अभिनीहरति अभिनिन्नामेति-यहाँ, ऋद्धिप्राप्त (=सफल, सिद्ध) होने के अर्थ में ऋद्धि है। अर्थात् निष्पत्ति के अर्थ में, लाभ के अर्थ में। जैसा कि कहा गया है-"यदि कामना करने वाले को कामना सिद्ध होती है" (खु० नि०, पृ० ३८८)। एवं-"नैष्काम्य ऋद्धि प्राप्त करता है, अत: ऋद्धि है। यह (राग को) प्रतिहत (=आहत) करती है, अत: प्रातिहारिक है। (इससे) अर्हत् मार्ग सिद्ध होता है, अत: ऋद्धि है। प्रतिहत करती है अत: प्रातिहारिक है।" (खु० नि० ५/४९४)। । ९. अन्य विधि यह है-ऋद्धि प्राप्त होने के अर्थ में ऋद्धि है। यह उपायसम्पदा का अधिवचन है; क्योंकि उपायसम्पदा अभिप्रेत फल देने से सफल होती है; जैसा कि कहा है"यह गृहपति चित्त शीलवान्, कल्याणकारी है। यदि वह प्रणिधान (-दृढ़ इच्छा, सङ्कल्प) करता है-'भविष्य में मैं चक्रवर्ती राजा होऊँ' तो उस शीलवान् के चित्त का यह प्रणिधान सिद्ध होता है, विशुद्ध होने से।" (सं० नि० ३/१४९९)।
SR No.002429
Book TitleVisuddhimaggo Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDwarikadas Shastri, Tapasya Upadhyay
PublisherBauddh Bharti
Publication Year2002
Total Pages386
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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