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________________ ब्रह्मविहारनिद्देसो नासीसन्ती ति एवं पारमियो पूरेत्वा याव दसबल - चतुवेसारज्ज - छअसाधारणञाणअट्ठारसबुद्ध-धम्मप्पभेदे सब्बे पि कल्याणधम्मे परिपूरेन्ती ति एवं दानादिसब्बकल्याणधम्मपरिपूरिका एता व होन्तीति ॥ इति साधुजनपामोज्जत्थाय कते विसुद्धिमग्गे समाधिभावनाधिकारे ब्रह्मविहारनिद्देसो नाम नवमो परिच्छेदो ॥ •• १९३ वीर्य के कारण वीरत्व को पाकर भी, सत्त्वों के नाना प्रकार के अपराधों को क्षमा कर देते हैं । 'तुम्हें यह देंगे, (यह) करेंगे' - ऐसी प्रतिज्ञा करने पर उसे तोड़ते नहीं हैं। उनके प्रति अचल मैत्री के कारण, ( उनके कार्य को ) सबसे पहले करते हैं; उपेक्षा (युक्त) होने से प्रत्युपकार नहीं चाहते। इस प्रकार (दान, शील आदि) पारमिताओं को पूरा कर, दश बल, चार वैशारद्य, छह असाधारण ज्ञान, अट्ठारह बुद्ध - धर्म - इन प्रभेदों वाले सभी कल्याणकर धर्मों को भी पूर्णता तक पहुँचाते हैं। इस प्रकार ये (मैत्री आदि चित्तविमुक्तियाँ) ही दान आदि सब कल्याणकर धर्मों को पूर्णता लाभ कराने वाली हैं | साधुजनों के प्रमोदहेतु विरचित विशुद्धिमार्ग ग्रन्थ के समाधिभावनाधिकार में ब्रह्मविहारनिर्देश नामक नवम परिच्छेद सम्पन्न ॥
SR No.002429
Book TitleVisuddhimaggo Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDwarikadas Shastri, Tapasya Upadhyay
PublisherBauddh Bharti
Publication Year2002
Total Pages386
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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