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________________ अनुस्सतिकम्मट्ठाननिद्देसो ७९ कोट्ठासववत्थापनकथा १८. एवं निमित्तं गहेत्वा सब्बकोट्ठासे वण्ण-सण्ठान-दिसोकास-परिच्छेदवसेन ववत्थपेत्वा वण्णसण्ठानगन्धआसयोकासवसेन पञ्चधा पटिक्कूलता ववत्थपेतब्बा। तत्रायं सब्बकोट्ठासेसु अनुपुब्बकथा १९. केसा ताव पकतिवण्णेन काळका अद्दारिद्रुकवण्णा'। सण्ठानतो दीघवट्टलिकातुलादण्डसण्ठाना। दिसतो उपरिमदिसाय जाता। ओकासतो उभासु पस्सेसु कण्णचूळिकाहि, पुरतो नलाटन्तेन, पच्छतो गलवाटकेन परिच्छिन्ना सीसकटाहवेठनं अल्लचम्म केसानं ओकासो। परिच्छेदतो सीसवेठनचम्मे वीहग्गमत्तं पविसित्वा पतिट्ठितेन हेट्ठा अत्तनो मूलतलेन, उपरि आकासेन, तिरियं अञ्जमजेन परिच्छिन्ना, द्वे केसा एकतो नत्थी ति अयं सभागपरिच्छेदो। केसा न लोमा, लोमा न केसा ति एवं अवसेस-एकतिंसकोट्ठासेहि अमिस्सीकता केसा नाम पाटियेको एककोट्ठासो ति अयं विसभागपरिच्छेदो। इदं केसानं वण्णादितो ववत्थापनं। इदं पन नेसं वण्णादिवसेन पञ्चधा पटिकलतो ववत्थापनं-केसा नामेते वण्णतो पि पटिक्कूला। सण्ठानतो पि गन्धतो पि आसयतो पि ओकासतो पि पटिक्कूला। कोष्ठव्यवस्थापन (शरीर के भागों का निश्चय) १८. यों निमित्त का ग्रहण कर, सभी भागों का वर्ण-संस्थान-दिशा-अवकाश-परिच्छेद के अनुसार निश्चय कर वर्ण, संस्थान, गन्ध, आश्रय, अवकाश के अनुसार पञ्चविध प्रतिकूलता का निश्चय करना चाहिये। ___ अब यहाँ सभी भागों की क्रमशः व्याख्या की जा रही है - १९. केसा-(केश) स्वाभाविक रूप में वण्णेन (रंग से) काले, कच्चे अरिष्ट के फल के रंग के होते हैं। सण्ठानतो (आकार से) लम्बी गोल तराजू के डण्डों जैसे (लम्बे) आकार के होते हैं। दिसतो (दिशा से) ऊपरी दिशा (नाभि से ऊपरी दिशा) में होते हैं। ओकासतो (अवकाश से) दोनों ओर की कनपटी, आगे ललाट, पीछे गर्दन के गड्ढे से जिसकी सीमा आरम्भ होती है, ऐसा शिर:कपाल को परिवेष्टित करने वाला भीतरी चर्म केशों का अवकाश (स्थान) है। परिच्छेदतो-सिर को ढंकने वाले चर्म में धान की नोक के बराबर भीतर घुसकर स्थित हो, अपनी जड़ की सतह द्वारा नीचे से, आकाश द्वारा ऊपर से, चारों ओर एक दूसरे से परिच्छिन्न हो। दो केश एक साथ नहीं है-यह सभाग परिच्छेद है। केश लोम नहीं हैं, लोम केश नहीं हैं, यों शेष इकत्तीस भागों से मिश्रित (एकरूप) न होने के कारण केश एक भिन्न ही भाग है- यह विसभाग परिच्छेद है। यह केशों का वर्ण आदि के अनुसार निश्चय है। - वर्ण आदि के अनुसार उनका पाँच प्रकार से प्रतिकूल होने का यह निश्चय है- ये केश १. अद्दारिट्ठकवण्णा ति। अभिनवारिटुफलवण्णा।
SR No.002429
Book TitleVisuddhimaggo Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDwarikadas Shastri, Tapasya Upadhyay
PublisherBauddh Bharti
Publication Year2002
Total Pages386
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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