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तत्त्वार्थसूत्रजनागमसमन्वये
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पासइ, भावप्रोणं सुप्रणाणी उवउत्ते सव्वे भावे जाणइ पासइ॥
नन्दि सू० ५८ रूपिष्ववधेः ॥२७॥
श्रोहिदसणं अोहिदंसणिस्स सम्वरूविदव्येसु न पुण सव्वपज्जवसु ।।
अन० स० १४४ तं समासयो चउन्विहं पगणत्त। तं जहा दव्यत्रो खेत्तो कालो भावो। तत्थ दबत्रो अोहि. नाणी जहन्नेणं अणंताई रूविदव्वाइ जाणइ पासइ उक्कोसेणं सवाई रूविदवाई जाणइ पासइ खेत्तओणं अोहिनाणी जहराणेणं अंगलस्स असखिजइ भाग जाणइ पासइ उक्कोसेणं असंखिज्जाइं अलोगलोगपमाणमित्ताई खंडाई जाणइ पासइ कालश्रोणं ओहिनाणी जहरणेणं श्रावलियाए असखि