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तत्त्वार्थसूत्र जैनागमसमन्वये
उज्जुमइ ते भावे जाणइ पासइ सव्वभावा अतभागं जाणइ पासइ तं चैव विउलम इणं श्रब्भ हियतरागं विउलतरागं विसुद्धतरागं जाणइ पास मणपज्जव राणा रण पण जरण मण परिचिंतित्थ पागडणं माणुसखित्त निबद्धं गणा पच्चइयं चरितवओ सेत मणपञ्जवणाणं ॥
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नन्दि० सू०१८.
विशुद्धि क्षेत्रस्वामिविषयेभ्यो ऽवधि -
मनः पर्यययोः ॥ २५॥
भेद विसय संठाणे श्रभितर वाहिरेय देसोही । उहिस्सय खयबुड्ढी पडिवाई चेव पडिवाई | प्रज्ञापना सू० पद ३३ गा० १.
इड्ढीपत्त अपमत्तसंजय सम्मदिद्धि पज्जतग संखेज्जवासाउ कम्मभूमि गब्भवक्कंति
मरणु
स्वाणं मणपजवनाणं समुप्पज्जइ ॥